हमने अब अपने कार्यों को भी छोटे और बड़े कार्य की श्रेणी में बांट दिया है। लेकिन आज की Desi Kahani: पुरसीपुर का गड़रिया में आप जानेंगे कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नही होता। आप छोटे काम को भी अपनी मेहनत और ईमानदारी से शिखर तक पहुंचा सकते हो।
इस Desi Kahani में नाथु नाम का एक गड़रिया है, जो गांव में शहर की तर्ज पर आधुनिकीकरण के बावजूद भी अपनी भेड़ों को नहीं बेचता है। इस Desi Kahani में जानिए कि आखिर क्यों लोग उसे पुरसीपुर का गड़रिया कहने लगे और कैसे वो अपने क्षेत्र का सबसे धनवान व्यक्ति बन गया।
Desi Kahani: पुरसीपुर का गड़रिया
गांव की सुबह का दृश्य हमेशा ही मनोरम होता है। सूरज की पहली किरण पड़ते ही जैसे हर जीव जंतु में एक नई ऊर्जा का प्रवाह हो जाता है। पहाड़ों के बीच एक गांव बसा हुआ था, जिसका नाम था पुरसीपुर था। पुरसीपुर में एक साधारण सा आदमी रहता था। उस आदमी का नाम नाथु था, लेकिन गांव लोग उसे नाथु गड़रिया के नाम से पुकारते थे। उसका यह नाम सही भी लगता था क्योंकि उसकी पूरी जिंदगी भेड़ों के साथ ही गुजरी थी।
नाथु के पिता भी भेड़ों के गड़रिया थे। नाथु बचपन से ही, अपने पिता के साथ दूर-दूर के पहाड़ों पर भेड़ें चराने जाता। उसे अपनी भेड़ों को चरते हुए देखना बहुत पसंद था। उसके पिता का भी अपनी भेड़ों के प्रति अथाह प्रेम था। उसके पिता उसे बताते कि एक अच्छे गड़रिए का काम केवल भेड़ों को चारागाह में छोड़ना ही नहीं होता बल्कि अपनी संतान के समान ही उनकी देखभाल, उनके स्वास्थ्य पर ध्यान देना और उनकी सुरक्षा भी है।
नाथु के पिता की मृत्यु के बाद भेड़ों की देखभाल की सारी जिम्मेदारी नाथु पर आ गई थी। भेड़ें चराना नाथु का बचपन से शौक था लेकिन अब यह नाथु की पूरी जिंदगी बनने वाला था। धीरे-धीरे उसे भेड़ों के सारे हाव-भाव समझ आने लगे। वो उनके हाव-भाव देखकर ही समझ जाता कि उन्हें भूख-प्यास लगी है या बीमार है।
नाथु का दिन सूरज की पहली किरण के साथ ही शुरू हो जाता था। नाथु अपने हाथ में एक लाठी लेकर और झोले में कुछ रोटियां और पानी लेकर हरे-भरे पहाड़ों की ओर निकल जाता। नाथु के लिए उसकी भेड़ें परिवार की तरह थी। वह भेड़ों को अपनी संतान की तरह देखभाल करता था। उसने अपनी भेड़ों के अलग-अलग नाम भी निकाल रखे थे जैसे- लाली, प्यारी, मिशरी आदि।
मिशरी नाथु की सबसे प्यारी भेड़ थी। मिशरी नाथु के सामने ही उर्निया से भेड़ बनी थी। वह बहुत ही नटखट थी लेकिन नाथु की सारी बातें मानती थी। ऐसा लगता था जैसे नाथु और मिशरी दोनों एक-दूसरे की भाषा समझते हो।
नाथु की भेड़ें ही उसकी पूरी दुनिया थी। उसके पास कोई ज्यादा बड़ा भेड़ों का झुंड नहीं था बल्कि उसके झुंड में केवल 60-70 भेड़ें ही थी। लेकिन वे उसके लिए अमूल्य थी। गांव के लोगों ने कई बार उसे सलाह दी की वह अपनी भेड़ें बेच दे और उन पैसों से शहर में नया काम शुरू कर दे। परंतु नाथु अपने काम से संतुष्ट था और वो अपनी भेड़ों को ही अपना अस्तित्व मानता था।
लेकिन पुरसीपुर गांव के चारों ओर घने जंगल थे, जिसमे अनेक खतरनाक जानवर रहते थे। इस कारण, यह सुरक्षित गांव नहीं था। एक दिन एक भेड़िए ने नाथु की भेड़ों पर हमला कर दिया। नाथु के पास केवल एक लाठी का सहारा था लेकिन उसने अपनी जान दांव पर लगाकर भेड़िए का सामना किया और भगा दिया। नाथु भी जख्मी हो गया था लेकिन वह अपनी भेड़ों को सही सलामत देखकर खुश था।
जब नाथु गांव लौटा तो लोगो ने उसका खूब स्वागत किया। चारों ओर नाथु की वाहवाही हो रही थी। गांव के लोगो ने उसे पुरसीपुर का गड़रिया (Desi Kahani) की उपाधि से विभूषित किया। आस पास के गांवों में भी पुरसीपुर का गड़रिया की चर्चा थी।
नाथु की ज्यादातर रातें पहाड़ों पर ही गुजरती थी। वह अक्सर तारों से भरे आसमान के नीचे सोता हुआ सोचता कि उसका ग्रामीण जीवन कितना सरल और सुंदर है। गांव के लोग एक-दूसरे से कितना प्रेम करते हैं। गांव के लोगों ने उसे कभी भी अकेलेपन का एहसास नहीं होने दिया था। नाथु को सब कुछ बिल्कुल Desi Kahani की तरह लग रहा था। उसे इस बात का बिल्कुल भी आभास नहीं था कि अब परिस्थितियां बदलने वाली है।
गांव में भी अब आधुनिकता की लहर पहुंच गई थी। बहुत सारे लोग अपने गांव की संपति बेचकर शहर में नौकरी की तलाश में चले गए थे। शहर जाने वालों में नाथु के कई खास दोस्त भी शामिल थे। उसके दोस्तो ने नाथु को भी बहुत समझाया कि वो अपनी भेड़ें बेच दे और शहर जाकर नया काम शुरू करे।
कई बार नाथु को भी लगा कि शायद उसके दोस्त सही कह रहे है। आने वाले समय में भेड़ों से उसका गुजारा नही होगा। लेकिन जब वो अपनी भेड़ों की तरफ देखता तो उसके सारे सवालों का जवाब मिल जाता। आखिरकार मनुष्य का लक्ष्य शांति पाना ही तो है और नाथु अपनी भेड़ों के साथ संतुष्ट था, भले ही उसका गुजारा मुश्किल से हो।
नाथु की अपनी भेड़ों के प्रति सच्ची लगन और समर्पण था। उसके अधिकांश दोस्त शहर की ओर रुख कर चुके थे। लेकिन नाथु भले ही आधुनिकता से दूर था पर उसमे अपने काम के प्रति निष्ठा थी। वह अपने काम के लिए गर्व महसूस करता था। अब तो गांव वाले भी काम के प्रति उसकी लगन देखकर उसकी तारीफ करते थे।
एक दिन शहर से ऊन का एक बहुत बड़ा व्यापारी गांव आया। वो गांव वालो से ऊन खरीदना चाहता था लेकिन लगभग सभी गांव वालो ने अपनी भेड़े बेच दी थी। फिर उस व्यापारी ने नाथु गड़रिए के बारे में सुना। लोगो ने उसे ये भी बताया कि सब उसे पुरसीपुर का गड़रिया (Desi Kahani) कहते है।
व्यापारी जब नाथु से मिला तो उसकी ईमानदारी और काम की निष्ठा देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने नाथु के सामने भेड़ों की कच्ची ऊन की डिलीवरी का बहुत बड़ा प्रस्ताव रखा। नाथु ने वो प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। नाथु ने कभी सोचा नहीं था कि ऊन भी इतनी महंगी बिक सकती है।
नाथु को ऊन बेचकर बहुत सारे पैसे मिले, जिससे उसने और भेड़े खरीद ली। अब वो पहले से 3 गुना ऊन का उत्पादन कर रहा था। वह आस पास के क्षेत्र में सबसे बड़ा ऊन सप्लायर बन गया। चारों ओर केवल पुरसीपुर का गड़रिया ही छाया हुआ था।
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पुरसीपुर के गड़रिए ने अपने लिए एक आलीशान मकान भी बनवा लिया। गांव के गरीब लोगो की भी सहायता की और भेड़ों की अच्छे से देखरेख के लिए 2 सहायक भी रख लिए। अब उसकी जिंदगी उन सभी लोगो से बेहतर थी जो गांव की संपति बेचकर शहर गए थे।
दोस्तो, पुरसीपुर का गड़रिया (Desi Kahani) से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें अपने काम को सच्ची निष्ठा से करना चाहिए। समय आने पर हमें हमारी मेहनत का फल जरूर मिलता है। आप जो भी काम करे, पूरे दिल से करे। लोगो की देखा देखी न करें। प्रत्येक कार्य सम्मान पाने योग्य है।
पुरसीपुर का गड़रिया (Desi Kahani) हर उस व्यक्ति के लिए सीख है जो अपने काम को छोटा समझता है। Desi Kahani ने हम सबको बताया है कि यदि आप अपने काम से प्रेम करते हो और उसे पूरी मेहनत से करते है तो आपको सफलता जरूर मिलेगी।
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