छोटी कहानी इन हिंदी (Chhoti Kahani in Hindi): अक्सर हमें वो ही कहानियां पसंद आती है, जिनके निष्कर्ष तक हम जल्दी पहुंच जाते है। इसलिए सभी उम्र के पाठकों में छोटी कहानी इन हिंदी (Very Short Story in Hindi) का क्रेज बहुत ज्यादा है। शायद आप भी very short story in hindi with moral के दीवाने है तभी तो आप हमारी इस पोस्ट तक पहुंचे है।
इस पोस्ट में हमने 10+ very short story in hindi with moral लिखी है, जो नैतिक होने के साथ-साथ बहुत रोचक भी है।
परिचय
शुरू से ही हमारे भारतीय समान में हिंदी कहानियां सुनने और सुनाने का चलन रहा है। समय के साथ कहानियां भले ही बदल गई हो, लेकिन उनमें छिपी शिक्षाएं आज भी वहीं है। आज भी दादा-दादी बताते है कि पहले के समय में, कुछ hindi stories इतनी बड़ी होती थी कि उनको सुनाने में दो दिन तक लग जाते।
लेकिन आज के युग में किसी को भी इतना समय नहीं है कि वो इतनी लंबी कहानियां सुन पाए इसलिए छोटी कहानी इन हिंदी (Very Short Story in Hindi with moral) का चलन तेजी से बढ़ा है। ये छोटी हिंदी कहानियां पढ़कर हमें अपनी कुछ कमियां जानने का भी अवसर मिलता है और अपने कुछ गुणों पर गर्व करने का अवसर मिलता है। तो आईए पढ़ते है chhoti kahani in Hindi with moral
छोटी कहानी इन हिंदी । Very Short Story in Hindi with moral । Chhoti Kahani in Hindi
Hindi Stories के इस blogpost में हम आपके लिए 10+ छोटी हिंदी कहानियां लेकर आए है जो कि बहुत रोचक है। हमारी ये Very Short Story in Hindi नीचे श्रृंखलाबद्ध है-
1. सबकी अपनी सुंदरता
एक हरे-भरे घने जंगल में एक मोर और तोता रहते थे। यूं तो मोर और तोते के बीच दोस्ती थी लेकिन मोर को अपनी सुंदरता पर बहुत घमंड था।
मोर जंगल के सभी पक्षियों और जानवरों को खुद से कम आंकता था क्योंकि वो उन्हें खुद के जितना सुंदर नहीं समझता था। वहीं तोते की मीठी बोली के कारण वह सबका प्रिय था।
एक दिन मोर और तोते के बीच बहस हो गई। मोर तोते से कहने लगा “जरा, इस पूरे जंगल में मेरे जितने सुंदर पंखों वाला पक्षी ढूंढकर दिखाओ। मेरे पंखों को देखकर ही लोग मेरे दीवाने हो जाते है।”
तोते ने कहा “शायद बुढ़ापे के साथ तुम्हारे पंखों में ताकत न बचे लेकिन मेरी मीठी वाणी लोग मरने के बाद भी याद करेंगे।”
मोर ने कहा “ऐसा बिल्कुल नहीं है। तुम्हारी मीठी आवाज किसी काम नहीं आएगी लेकिन मेरे सुंदर पंख लोगो का हमेशा मन मोहेंगे।” इतना सुनकर तोता वहां से उड़ गया।
एक दिन जंगल में बहुत भयानक आग लग गई। मोर उस आग में फंस गया क्योंकि वह अपने उन सुंदर भरी पंखों की वजह से उड़ नहीं पाया। वहीं तोता उड़कर जंगल के सभी जानवरों को आग बुझाने के लिए बुला लाया।
तोते की मीठी बोली कि वजह से उसकी बात सारे जानवरों ने मान ली। हाथी मामा ने अपने सूंड में पानी भरकर सारी आग बुझा दी।
मोर बच गया। अब मोर को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने तोते तथा जंगल के सभी जानवरों से माफी मांगी।
सबकी अपनी सुंदरता कहानी से शिक्षा
हर किसी में अलग-अलग प्रकार की विशेषता होती है। इसलिए हमे किसी को भी छोटा या साधारण समझने की गलती नहीं करनी चाहिए।
2. दयालु दर्जी
एक नगर में लालू नाम का दर्जी रहता था। वह दर्जी अपने सिलाई के हुनर के साथ-साथ अपने दयालु स्वभाव के लिए भी जाना जाता था। वह अमीरों से कपड़े सिलने के अपने पूरे पैसे लेता लेकिन गरीब लोगों के मुफ्त में कपड़े सिल देता। किसी फटे कपड़े वाले गरीब के कपड़ों की मरम्मत भी खुद से कर देता।
एक दिन लालू के पास एक बुड्ढी औरत आई। सर्दी की वजह से वह मैया कंपकंपा रही थी। उसने लालू से कहा बेटा मेरे लिए कोई गर्म कपड़ा सिल दो लेकिन मेरे पास पैसे नहीं है।लालू ने उस औरत को तुरंत बैठाया। और अपने ही गर्म कपड़े से एक बढ़िया स्वेटर सीलकर बुड्ढी माई को दे दी।
आप Very Short Story in Hindi पढ़ रहे है।
कुछ दिनों बाद, कुछ राजकीय कर्मचारी लालू को लेने आए। लालू डरता हुआ राज दरबार में पहुंचा तो उसने देखा कि वहां वह बुड्ढी माई भी मौजूद थी जिसको कुछ दिनों पहले ही उसने स्वेटर सीलकर दी थी। लेकिन अब वह पहले की तरह फटे कपड़ों में नहीं थी बल्कि उसने सोने की जरी वाली साड़ी पहन रखी थी। उसके आभूषणों से पता चल रहा था कि वो राजपरिवार से ही तालुक रखती है।
तभी उस बुड्ढी माई ने हंसते हुए कहा शायद तुम मुझे देखकर चौंक गए। मैं भेष बदलकर अपने लोगों की परीक्षा लेने निकली थी। तुम्हारी दयालुता से मैं बहुत खुश हूं।
वो बुड्ढी माई राजमाता थी। उसके इशारे पर नौकर कई थल लेकर जिनमें उपहार थे और राजमाता ने लालू को पुरस्कृत किया। पूरे नगर में लालू की चर्चा थी।
दयालु दर्जी कहानी से शिक्षा
हमें सभी के प्रति दयालु रहना चाहिए। निस्वार्थ भाव से की गई सेवा का फल जरूर मिलता है।
3. असली पूंजी
एक गांव के पास आश्रम में एक महात्मा रहते थे। महात्मा जी पूरे दिन अपने ध्यान में लीन रहते और सुबह-शाम भिक्षा के लिए चले जाते।
एक दिन फेरी पर जाते वक्त उन्हें एक धनी व्यक्ति मिला। उसने महात्मा से पूछा कि “महात्मा जी, मैने अपनी जिंदगी में खूब धन कमाया है और दान भी खूब किया है तो मुझे तो स्वर्ग मिल ही जाएगा न।”
ये सुनकर महात्मा समझ गए कि उसे अपने धन पर अधिक ही घमंड है तो महात्मा जी ने उसे अपने साथ आश्रम आने को कहा। व्यक्ति जब महात्मा के साथ आश्रम पहुंचा तो महात्मा जी उसके हाथ में एक सुई थमा दी और कहा कि “तुम स्वर्ग जा ही रहे हो तो मेरा भी ये छोटा सा काम कर देना। ये सुई स्वर्ग में रख देना।”
इतना सुनते ही वो व्यक्ति जोर से हंसने लगा और कहा कि “महात्मा जी, भला ये कैसे संभव है। ये तो यहां की चीज है, इसे कोई कैसे स्वर्ग ले जा सकता है।”
महात्मा ने कहा “बेटा, अगर तुम इतनी छोटी सुई भी साथ लेकर नहीं जाओगे तो ये धन क्या तुम्हारे साथ जाएगा? ये धन भी यहां की ही वस्तु है, और तुम्हारे न चाहने के बावजूद भी तुम्हे इसे यहीं छोड़कर जाना ही होगा।”
अब व्यक्ति समझ गया था कि धन उसे स्वर्ग नहीं पहुंचा सकता। और न ही कुटिल मन से किया गया दान उसे स्वर्ग पहुंचा सकता है। असली पूंजी तो उसके अच्छे कर्म है। इस प्रकार, चंद मिनटों में ही उसके घमंड का अंत हो गया।
असली पूंजी कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमारी असली पूंजी हमारा धन नहीं बल्कि व्यवहार है। हमारा व्यवहार ही हमारे साथ जाएगा।
4. चतुर नानी
एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। उस बुढ़िया के बहुत सारे दोहिते-दोहितन थे। इस कारण, उन्हें सभी गांव वाले प्यार से नानी ही कहकर बुलाते थे।
नानी बहुत चतुर थी। गांव की कोई भी समस्या होती तो लोग नानी से विचार-विमर्श करने आते। गांव के सभी बच्चों को भी नानी बहुत प्रिय थी क्योंकि वह रोज शाम उनके घर कहानी सुनने जाया करते।
एक बार गांव में एक चालक व्यापारी आया। वो लोगो से पहेली पूछता और कहता कि यदि तुम मेरी पहेली का सही जवाब दोगे तुम्हे मैं धन दूंगा और यदि तुम नहीं बता पाए तो तुम्हे मुझे धन देना होगा।
लोग लालच में आ गए। व्यापारी की पहेलियों का जवाब कोई नहीं बता पाया। लोगो ने अपना बहुत धन लूटा दिया पर जितने की आस में वो दोबारा दांव लगाते और हार जाते। ये खेल अब जुए की तरह बन गया था। लोग अपना बहुत कुछ हार गए।
अंत में उन्हें कोई विकल्प नहीं दिखा तो चतुर नानी के पास सब गांव वाले आए। सबने कहा कि “नानी हमें बचा लीजिए, हम वादा करते है कि आज के बाद ऐसा लालच नहीं करेंगे।”
अब नानी ने व्यापारी को बुलाया और कहा कि वो भी यह खेल खेलना चाहती है। व्यापारी ने कहा कि “यदि तुम मुझे मेरी पहेली का जवाब दे दोगी तो मैं तुम्हे अपनी गए दूंगा वरना तुम अपनी गाय मुझे दोगी।”
नानी ने कहा, “नहीं, अगर मैने जवाब बता दिया तो तने गांव वालो से जितना धन लूटा है, उतना उन्हें वापस देना होगा। और यदि मैं जवाब नहीं दे पाई तो अपनी सारी जायदाद तुम्हारे नाम कर दूंगी।”
व्यापारी ने भी लालच में आकर हां करदी। अब व्यापारी ने अपनी पहली पूछी कि “ऐसी चीज बताओ जो बिना हिलाए डुलाए सब जगह पहुंच जाती है।”
नानी ने कुछ देर सोचकर बताया कि “यह तो बहुत आसान है। सही उत्तर खबर है। खबर बिना हिले-डुले कहीं भी पहुंच जाती है।”
आशा है कि आपको छोटी कहानी इन हिंदी (Very Short Story in Hindi) पसंद आ रही है।
व्यापारी यह सुनकर चौंक गया। उसे अपने लालच पर बहुत दुःख हुआ और उसने गांव वालो से जो भी जीता था, लौटा दिया। गांव वाले नानी की चतुराई देखकर बहुत खुश हुए।
चतुर नानी की कहानी से शिक्षा
हमें सदैव अपनी मेहनत पर ही विश्वास करना चाहिए। कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। साथ ही, हर परिस्थिति में बिना घबराए अपनी बुद्धि का उपयोग करना चाहिए।
5. मूर्ख सुनार
एक राज्य में एक मूर्ख सुनार रहता था। ऐसा नहीं था कि वो बुद्धिहीन था बल्कि उसे उसका लालच ही मूर्ख बनाता था।
एक बार उस राज्य के राजा ने उस सुनार को बुलाकर कहा कि “मैं तुम्हें बहुत सारा सोना और मेहनताना दूंगा। तुम मेरे लिए सबसे सुंदर मुकुट बनाओ। जितना सोना मुकुट में लगेगा, उसका दोगुना सोना मैं तुम्हे दूंगा।”
उस सुनार ने हामी भर ली। मुकुट बनाते समय उसके मन में आया कि क्यों न, मैं मुकुट में तांबे की मिलावट कर दूं। इससे मेरे पास अधिक सोना बच जाएगा। उस मूर्ख सुनार ने ऐसा ही किया और राजा को मुकुट बनाकर दे दिया।
राजा ने उस मुकुट की गुणवत्ता की जांच अपने बूढ़े शाही सुनार से करवाई तो पता चला कि उसमें तांबे की मिलावट है। राजा ने उसे दरबार में उपस्थित करने का आदेश दिया।
राजा ने जब ऐसा करने का कारण पूछा तो सुनार ने कहा कि “मैं अपनी मूर्खता की वजह से लालच का वशीभूत हो गया था। मैने ये बिल्कुल नहीं सोचा कि आप इसे पहचान जाओगे।
राजा ने कहा कि “तुमने अपनी मूर्खता और लालच के कारण अपनी ही नहीं, अपनी कला को भी अपमानित किया है। तुम्हें इसकी सजा जरूर मिलेगी।” सैनिकों ने उस मूर्ख सुनार को कारागार में डाल दिया।
मूर्ख सुनार की कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। लालच ही हमारी सबसे बड़ी मूर्खता है। असली कमाई अपनी मेहनत द्वारा की हुई कमाई ही होती है।
6. चालाक कौए और लोमड़ी की कहानी
एक बार एक जंगल में कौवा और लोमड़ी रहते थे। कौवा देखने में हष्ट पुष्ट था। कौवे को देखकर लोमड़ी का मन ललचा गया। वह किसी भी तरह कौवे को खाना चाहती थी। लोमड़ी ने एक योजना बनाई।
एक दिन लोमड़ी कौवे के पास गई और कहने लगी कि कौवे तुम्हारी आवाज कितनी मीठी है। इतनी सुंदर आवाज वाला पक्षी तो शायद ही इस पूरे जंगल में होगा। तुम्हें तो राजदरबार में जाकर गाना चाहिए। अगर तुम राजी हो तो राजा के सामने तुम्हारी सिफारिश मैं कर सकती हूं।
इतना सुनते ही कौवा खुश हो गया। कौवा लोमड़ी की चालाकी नहीं समझ पाया किंतु कहीं न कहीं उसे शक जरूर था। अब लोमड़ी कौवे को रोजाना प्रैक्टिस करवाती। लोमड़ी कौवे को मित्रता के जाल में फंसाना चाहती थी। कौवा के मन में भी संदेह था, इस कारण वह लोमड़ी से दूर रहता।
कुछ ही दिनों में कौवा लोमड़ी के साथ सहज हो गया। एक दिन कौवा लोमड़ी के पास बैठा आंखे मूंदकर गा रहा था। तभी लोमड़ी ने कौवे पर झपट्टा मारा लेकिन कौवा उड़कर डाल पर बैठ गया और लोमड़ी पर हंसने लगा।
अब कौवा लोमड़ी की बातों में कभी नहीं आया क्योंकि वो लोमड़ी की फितरत जान गया था।
चालाक कौवे और लोमड़ी की कहानी से शिक्षा
हमें दूसरों की तारीफ सुनकर बहकावे में नहीं आना चाहिए। चाहे कोई कितनी भी मीठी बातें करे लेकिन हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए।
7. बहु की समझदारी
एक गांव में एक छोटा सा परिवार रहता था, जिसमें चार सदस्य थे- ससुर, सास, उनका बेटा और बहु। बहु का नाम राधिका था। यूं तो राधिका बहुत समझदार थी और परिवार में सबकी चहेती भी थी परन्तु अपनी सास की आंखों में सदैव खटकती थी।
उसकी सास भी अच्छी औरत थी परन्तु धीरे-धीरे अपनी बहु के लिए उसका लगाव कम हो गया था। वह बात-बात पर राधिका को झिड़क देती परन्तु राधिका उनकी बातों का बुरा नहीं मानती।
एक बार की बात है। राधिका ने चाय बनाई तो उसमें चीनी कम रह गई। जब सासू मां ने चाय पी तो उनके क्रोध का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने कहा, “तुमसे तो एक चाय भी ठीक से नहीं बनती। ये भी तुमने कड़वी बना रखी है। पता नहीं काम करने में मन भी लगता है या नहीं।”
राधिका ने कहा, “माफ करिये मांजी, लेकिन मैं अपनी इस गलती को सही कर सकती हूं। इसमें में थोड़ी सी चीनी और डालूंगी तो चाय की कड़वाहट अपने आप खत्म हो जाएगी। बिल्कुल हमारे रिश्ते की तरह, यदि हम अपने रिश्ते में थोड़ा सा प्यार और धैर्य डालते है तो हमारे रिश्ते की कड़वाहट भी गायब हो जाएगी।” राधिका ने बहुत ही प्यार और विनम्रता के साथ कहा।
सासू मां राधिका की बात समझ गई। उसे राधिका के साथ किए अपने बुरे व्यवहार के लिए दुःख हुआ। उन्होंने राधिका को गले लगा लिया और कहा, “बेटा, मुझे माफ करना। मैने तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया किंतु मैं अब हमारे रिश्ते को प्यार और धैर्य दोनो दूंगी।”
राधिका ने भी सासू मां को गले लगा लिया। सासू मां को अपनी बहु की समझदारी पर नाज हो रहा था।
बहु की समझदारी कहानी से शिक्षा
धैर्य और प्यार ही रिश्तों की डोर को और मजबूत बनाते है। हमें सभी से प्यार से बात करनी चाहिए और यदि कोई गलती कर भी दे तो उसे धैर्य से समझाना चाहिए। Very Short Story in Hindi शिक्षाप्रद है।
8. स्वादिष्ट लड्डू और चोर की कहानी
श्यामलाल की दुकान के लड्डू बहुत मशहूर थे। यूं तो श्यामलाल की दुकान में और भी सामान था लेकिन उसकी दुकान सबसे ज्यादा प्रसिद्ध उसके स्वादिष्ट लड्डू की वजह से थी। उसके बनाए गए लड्डू खाने में जितने स्वादिष्ट थे, उतने ही स्वास्थ्य के लिए भी अच्छे थे।
उसी गांव में एक चोर भी रहता था। उस सोचा कि क्यों न, मैं ये लड्डू चुरा लूं। तो मैं बिना पैसे दिए ये लड्डू खा पाऊंगा।
चोर ने चोरी की पूरी योजना बनाई और उसी रात ताला तोड़कर उसी दुकान में घुस गया। चोर ने वहां से बहुत सारे लड्डू चुराए और भाग गया। रास्ते में कीचड़ था। चोर को अंधेरा में दिखाई नहीं दिया और उसके सारे लड्डू कीचड़ में गिर गए। साथ ही, वो भी कीचड़ में सन गया।
अगले दिन, सुबह श्यामलाल ने पुलिस में शिकायत की और चोर को पुलिस वालों ने पकड़ लिया। अब चोर ने अपनी गलती मान ली। चोर को चोरी के लिए सजा भी मिली। जितने लड्डू चुराए, उतना जुर्माना भी देना पड़ा और लड्डू का स्वाद भी नहीं चख पाया।
स्वादिष्ट लड्डू और चोर की कहानी से शिक्षा
मेहनत से कमाए धन से ही शौक पूरे किए जाते है। चुराकर कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। इसलिए सदैव अपनी मेहनत पर भरोसा करो और मेहनत से ही चीज हासिल करने की कोशिश करो।
9. आलस्य ही सबसे बड़ा दुश्मन
एक बार की बात है। गांव में तीन दोस्त रहते थे। तीनों ही बहुत आलसी थे। न कुछ कमाते, न कुछ करते। पूरे दिन बस पड़े रहते। उनके घर वालों के ही नहीं बल्कि पूरे गांव के लोगो की आंखों में चुभते थे।
एक दिन गांव में एक साधु महात्मा आए। तीनों जाकर उनके कदमों में गिर गए और गिड़गिड़ाने लगे कि “महाराज, हमसे हर कोई नफरत करता है क्योंकि हम कमाते नहीं है। आप हमें कोई ऐसा उपाय जिससे हमें बिना मेहनत के बहुत सारा धन मिल जाए।”
साधु को उन पर दया आ गई। उन्होंने कहा कि “मैं तुम्हें एक तालाब बताता हूं। उसमें तीन सुनहरे रंग की मछलियां है। ये मछलियां तुम्हारी कोई भी एक इच्छा पूरी कर देगी।” साधु ने उन्हें उस तालाब का पता बता दिया।
तीनों चल पड़े। एक दोस्त तो रास्ते में ही सो गया कि मुझसे नहीं होगा ये सब। बाकी दो दोस्त तालाब के पास पहुंचे। एक ने कहा कि “यदि मैं इस तलब में जाऊंगा तो मेरे कपड़े गंदे हो जाएंगे। और क्या पता कि मछलियों को ढूंढ पाऊं या नहीं”
तीसरे ने कहा कि “अगर तुम दोनो ही नहीं जा रहे तो मैं क्यों ढूंढू।” इस तरह, तीनों दोस्त साधु महाराज के पास खाली हाथ लौट आए।
अब साधु महाराज ने उन्हें समझाया कि “तुम्हारा आलस्य ही तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु है। मेहनत किए बगैर तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा। जब तक तुम अपने आलस्य को पकड़कर रखोगे तब तक तुम कुछ भी हासिल नहीं कर पाओगे। अभी भी मछलियां वहीं है, ढूंढना चाहो तो तुम्हारी मर्जी”
तीनों दोस्तो को खुद से घृणा हुई और तीनों फिर से उसी तालाब के पास पहुंचे। इस बार उन्होंने मछलियों को ढूंढ लिया और वरदान मांगा कि “हम सदैव मेहनत के रास्ते पर चले और आलस्य हमें छू भी न पाए।”
मछलियों ने उन्हें वरदान दिया। अब तीनों बहुत मेहनत करने लगे और कुछ ही महीनों में वे गांव के सबसे अमीर आदमी बन गए। उन्होंने साधु महाराज का धन्यवाद किया और गांव वालो को बताया कि आलस्य ही हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। अगर हम अपने आलस्य पर नियंत्रण कर ले तो सब कुछ हमारे नियंत्रण में होगा।
आलस्य ही सबसे बड़ा दुश्मन कहानी से शिक्षा
आलस्य ही इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है। अगर कुछ पाना है तो मेहनत करनी होगी। हमारे आलस्य के कारण हम कई बार मंजिल के पास पहुंचकर भी लौट जाते है।
10. सच्चाई का फल
एक बार की बात है। समृद्धपुर नाम का एक राज्य था। वहां का राजा बहुत ही समृद्ध और शक्तिशाली था। राजा प्रजा को अपनी संतान की तरह प्रेम करता था लेकिन दुख की बात ये थी कि राजा की अपनी कोई संतान नहीं थी।
राजा अब वृद्ध हो चुके थे लेकिन उन्हें दिन-रात ये चिंता सता रही थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनके राज्य का क्या होगा? एक दिन उन्होंने अपने मंत्रियों को बुलाया और कहा कि मैं अपनी मृत्यु से पहले मेरी प्रजा को एक आखिरी उपहार के रूप में योग्य उतराधिकारी देना चाहता हूं। आप लोग किसी योग्य उतराधिकारी की तलाश करे।
चूंकि राजा की अपनी कोई संतान नहीं थी इसलिए मंत्रियों ने सुझाव दिया कि “महाराज, आप प्रजा में से ही किसी व्यक्ति को गोद ले लीजिए और उसे ही अपने बाद उतराधिकारी घोषित कर दीजिए।”
महाराज को ये विचार काफी उपयुक्त लगा। पर सभी मंत्रियों के सामने ये प्रश्न था कि इतनी जनता में से आखिरकार किसी सच्चे और नेक आदमी को कैसे पहचाना जाएगा। राजा ने आदेश दिया कि ये कल के दरबार में तय किया जाएगा।
अगले दिन दरबार में राजा ने राजा ने बीज मंगवाए और सभी गांव वालों को एक-एक बीज देकर कहा कि “ठीक 6 माह बाद जिसका भी पौधा सबसे बड़ा होगा, उसे ईनाम दिया जाएगा। लेकिन यदि किसी व्यक्ति ने पौधे की देखभाल नहीं करी और पौधा नहीं उगा तो उसे दंड दिया जाएगा।”
6 महीने बाद सभी गांव वालों को अपने-अपने पौधों के साथ शाही बगीचे में बुलाया गया। हर व्यक्ति अपना पौधा लेकर आया था। कुछ के पौधे तो पेड़ बन चुके थे। कुछ पर फुल लगे हुए थे। राजा बारी-बारी से सभी पौधों का अवलोकन कर रहे थे। राजा को देखकर मंत्रीगण सोच रहे थे कि शायद इस प्रतियोगिता का विजेता घोषित करना महाराज के लिए मुश्किल होगा।
तभी राजा ने देखा कि एक गमला बिल्कुल खाली था। मिट्टी और खाद के अतिरिक्त उसमें कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। राजा ने उस गमले की ओर इशारा करके अपने पास मंगवाया और सिंहासन पर बैठ गए। अब सभी लोगो में फुसफुसाहट होने लगी कि इस व्यक्ति को मृत्युदंड दिया जाएगा। सब लोग संभावित अनहोनी के लिए चिंता प्रकट कर रहे थे।
वो व्यक्ति अपना गमला उठाकर आया। उसके चेहरे पर कोई भी भय नहीं था। राजा ने जब उससे पूछा कि तुम्हारे गमले में कोई भी पौधा क्यूं नहीं है तो उसने कहा कि “महाराज, पिछले 6 महीनों में मैने लगातार इस पौधे की सेवा की है। पर्याप्त मात्रा में खाद और पानी दिया है। लेकिन हैरानी की बात है कि ये पौधा उगा ही नहीं। माफ करिएगा पर शायद इस बीज में ही कोई कमी थी।” उस व्यक्ति ने निडर परन्तु विनम्र आवाज में कहा।
मंत्रियों ने पूछा कि “क्या तुम्हे तुम्हारी गलती के लिए मिलने वाली सजा का भय नहीं है” तो उसने कहा कि “बिल्कुल नहीं, मैने मेरा काम पूर्णतया लगन और मेहनत से किया है। इसके बाद भी यदि ये पौधा नहीं उगा तो शायद इस पौधे की या मेरी किस्मत का दोष है लेकिन मैं अपनी मेहनत से संतुष्ट हूं।”
उस व्यक्ति का ये जवाब सुनकर मंत्री ने सैनिकों को उसे जेल में डालने का आदेश दिया लेकिन राजा ने उन्हें रोक दिया और अपने सिंहासन से खड़े होकर पूरे राज्य के लोगों के समक्ष घोषणा की कि “यही मेरा उतराधिकारी है। मेरी मृत्यु के बाद समृद्धपुर का अगला शासक यही बनेगा।”
राजा की इस घोषणा से सभी हैरान थे। सब जानना चाहते थे कि आखिर ऐसा क्यों हुआ लेकिन किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि ये राजा से पूछ सके।
राजा ने सबके चेहरों पर प्रश्न देखकर कहा कि “आप सभी लोगों को बीज वितरित करने से पहले मैने सभी बीजों को भुनवा दिया था तो पेड़ बनना दूर की बात है, बीजों का उगना ही नामुमकिन था। सभी लोगों ने दूसरे बीजों से पौधे उगाकर चालाकी की लेकिन इस व्यक्ति ने सच्चाई से अपनी मेहनत का परिचय दिया। मुझे अपने उतराधिकारी के रूप में किसी ऐसे ही सच्चे और नेक व्यक्ति की तलाश थी।”
राजा की बात सुनकर सभी लोग शर्म से अपना सिर झुकाकर खड़े थे।
सच्चाई का फल कहानी से शिक्षा
सच्चाई की जीत कहानी (हिंदी कहानियां अच्छी अच्छी) से शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव सच्चाई और मेहनत से काम करना चाहिए। यदि आप सच्चाई का रास्ता अपनाते है तो हो सकता है कि एक बार के लिए आपको मुश्किलों का सामना करना पड़े लेकिन अंत में आपको सच्चाई का इनाम ही मिलता है।
11. ईमानदारी का फल
एक गांव में रघु नाम का लड़का रहता था। वह बहुत ही ईमानदार और नेक था। गांव के सभी लोगों का चहेता था।
एक दिन रघु पैदल चलकर बाजार जा रहा था। तभी उसे रास्ते में किसी महिला का चमचमाता हुआ पर्स पड़ा हुआ मिला। रघु ने खोलकर देखा तो उसमे काफी सारे पैसे, क्रेडिट कार्ड और कागजात थे।
ये देखकर रघु परेशान हो गया। उसे बार-बार लग रहा था कि ये पर्स जिस भी महिला का है, वो कितनी चिंतित होगी। आखिरकार उसने उस महिला को ढूंढने की इरादा किया।
उसने कागजात में मिली जानकारी से महिला को ढूंढ निकाला। वह महिला बहुत ही रईस खानदान से थी और खुद का लाखों का व्यवसाय था। वह रघु की ईमानदारी से खुश हुई और रघु को पैसे ऑफर किए।
लेकिन रघु ने ये कहकर साफ मना कर दिया कि ये बस उसका कर्तव्य था। वह अपने आने-जाने के किराए के अलावा कुछ नही लेगा। अब तो वह अमीर महिला रघु की ईमानदारी से और भी प्रसन्न हो गई।
कुछ महीनों बाद, रघु के घर के आगे एक लंबी और बड़ी कार आकर रुकी। सारे मोहल्ले के लोग उस कार के चारों तरफ इकट्ठे हो गए। रघु ने देखा कि इसमें से वो ही अमीर महिला बाहर निकली है, जिसका उसने पर्स लौटाया था।
वह महिला रघु के पास आई और बोली कि “वास्तव में, पिछले महीने मेरे मैनेजर की अकाल मृत्यु हो गई है। तब से मैं किसी ईमानदार व्यक्ति को ढूंढ रही हूं लेकिन मुझे आपसे अधिक योग्य कोई नहीं मिला। कृपया मेरे मैनेजर बन जाइए।”
रघु ने भी हामी भर ली। गांव के लोग बहुत ही खुश और आश्चर्यचकित थे। हो भी क्यों न, आखिर रघु सबका चहेता था।
ईमानदारी का फल कहानी से शिक्षा
हिंदी कहानियां अच्छी अच्छी (inspirational Stories in Hindi) की कड़ी में ईमानदारी का फल कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें भी रघु की तरह ही ईमानदार रहना चाहिए। तुरंत नहीं तो एक दिन ये ईमानदारी रंग जरूर लाती है।
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Very Short Story in Hindi FAQ’s
छोटी कहानी इन हिंदी का बच्चों के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
छोटी कहानी इन हिंदी (हिंदी में छोटी कहानियां) बच्चो के मन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव डालती है। इससे उनकी कल्पनाशक्ति बढ़ती है। चूंकि हिंदी में छोटी कहानियां पढ़ते वक्त बच्चे बहुत जल्दी निष्कर्ष तक पहुंच जाते है। इस वजह से उन्हें ये उबाऊ भी नहीं लगती। छोटी कहानी इन हिंदी में निहित सबक और शिक्षाएं बच्चो के व्यक्तिगत विकास में सहायता करती है।
बच्चों के लिए बेस्ट छोटी कहानी इन हिंदी कौनसी है?
Hindi Stories की वेबसाइट पर प्रकाशित छोटी कहानी इन हिंदी बच्चों के मन पर सकारात्मक प्रभाव डालने के साथ-साथ रोचक भी है।
- सबकी अपनी सुंदरता
- दयालु दर्जी
- असली पूंजी
- चतुर नानी
- मूर्ख सुनार
- चालाक कौए और लोमड़ी की कहानी
- बहु की समझदारी
- स्वादिष्ट लड्डू और चोर की कहानी
- आलस्य ही सबसे बड़ा दुश्मन
- सच्चाई का फल
- ईमानदारी का फल
निष्कर्ष
प्रिय पाठकगणों, आज के इस लेख में मैंने छोटी कहानी इन हिंदी (Very Short Story in Hindi) लिखी है। आशा है कि आपको ये छोटी कहानी with Moral पसंद आई होगी।
Very Short Story in Hindi हमारी कल्पनाशीलता को बढ़ाती है। साथ ही, बच्चो के व्यक्तित्व निर्माण में भी योगदान देती है। छोटी हिंदी कहानियां में छिपी शिक्षाएं हमें जीवन के सही मूल्य सिखाती है। हमारी very Short Story in Hindi बाल साहित्य के भी सभी पहलुओं के अनुरूप है, ये बच्चो के मन पर गहरी छाप छोड़ती है।
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