अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित । Akbar and Birbal stories in hindi

नमस्कार दोस्तों, हम सब ने अपने बचपन में अकबर बीरबल की कहानी (Akbar Birbal ki kahani) बहुत सुनी है। हमें ये तो नहीं पता कि इन कहानियों में कितनी सच्चाई है और कितना झूठ। लेकिन हर एक कहानी से हमें बीरबल की तीव्र बुद्धि और चतुराई का पता चलता है।

अकबर बीरबल की कहानियां मनोरंजक होने के साथ-साथ हमें अनेक समस्याओं के समाधान की प्रेरणा भी देती है। अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित (Akbar and Birbal stories in hindi) अकबर और बीरबल के बीच हुए संवादों पर आधरित है। अकबर और बीरबल की कहानियां में चतुर बीरबल बादशाह अकबर का मंत्री कम और दोस्त ज्यादा नजर आता है।

आज भी अकबर बीरबल की कहानी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 500 साल पहले थी। इनमें अकबर और बीरबल के हास्यास्पद संवाद भी शामिल है। तो आईए पढ़ते है अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित (Akbar and Birbal Stories in Hindi with image)

नीले रंग का आम: अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित

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एक बार की बात है। शाम के समय बादशाह अकबर अपने दरबार की कार्यवाही के बाद अपने बगीचे में बैठे आम खा रहे थे। उनके साथ बीरबल भी बैठे थे।

तभी बादशाह अकबर ने बीरबल की परीक्षा लेने की सोची। उन्होनें बीरबल से कहा कि बीरबल, मैं नीले रंग के आम खाना चाहता हूं। मेरे लिए नीले रंग के आम लेकर आओ। यदि 7 दिनों के अंदर मेरे लिए नीले रंग के आम नहीं लेकर आए तो दोबारा मेरे राज्य में मत दिखना।

“जैसी आपकी आज्ञा हुजूर।” इतना कहकर बीरबल वहां से चला जाता है। हालांकि बादशाह अकबर और बीरबल दोनों ही जानते थे कि नीले रंग के आम नहीं होते। परंतु अकबर इस बार बीरबल के मुंह से सुनना चाहता था कि “जहांपनाह, मैं हार गया।” 

बादशाह अकबर जानते थे कि बीरबल आसानी से हार मानने वालो में से नहीं था। परंतु फिर भी वे मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे। उन्हें पक्का यकीन था कि इस बार बीरबल को मुंह की खानी पड़ेगी। (अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित)

कुछ दिन बीत जाने के बाद, बीरबल बादशाह अकबर के दरबार में उपस्थित हुए और कहा कि “जहांपनाह, मैने नीले रंग के आम वाला पेड़ ढूंढ लिया है। मुझे तो ऐसा पेड़ हमारे राज्य के केवल एक ही बगीचे में दिखा। मैने उस बगीचे के मालिक से आम लाने की बात भी करली है लेकिन ….”

“लेकिन क्या, बीरबल?” बादशाह अकबर ने कहा। बादशाह बहुत ही हैरान हो रहे थे। साथ ही, वो नीले रंग का आम देखने के लिए आतुर भी थे।

“जहांपनाह, बगीचे के मालिक ने तीन शर्ते रखी है। अगर उसकी शर्ते नहीं मानी तो वो प्राण दे देगा परन्तु अपने नीले रंग के आम नहीं देगा।” बीरबल ने झूठी निराशा के साथ कहा।

“हमें तीनों शर्ते बताओ” अकबर ने कहा।

“जहांपनाह, उसकी पहली शर्त ये है कि वो अपने आम केवल और केवल बादशाह अकबर यानी कि आपको देगा हुजूर” बीरबल ने कहा।

अकबर ने प्रसन्न होकर कहा “हमें पहली शर्त मंजूर है। दूसरी शर्त बताओ।”

“दूसरी शर्त ये है कि बादशाह को आम लाने स्वयं जाना होगा। वो किसी और को आम नहीं देगा।” बीरबल ने कहा।

अकबर ने जवाब दिया “ठीक है, हमें दूसरी शर्त भी स्वीकार है। तीसरी शर्त बताओ।”

बीरबल ने कहा “जहांपनाह, मालिक ने कहा है कि चूंकि उसके नीले रंग के आम विशेष प्रकार के आम है। इसके लिए आपको सप्ताह के सातों दिन छोड़कर किसी विशेष दिन ही आम लाने के लिए जाना होगा”

इतना सुनते ही सारे दरबारी हंसने लगे। बादशाह अकबर भी ठहाके लगाने लगे। अकबर बीरबल की चतुराई देखकर बहुत खुश था। (अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित)

परंतु कहीं न कहीं अकबर के मन में ये भी था कि वो आज भी बीरबल को मात नहीं दे सके। उल्टा उन्हें ही मुंह की खानी पड़ी।

छोटी-बड़ी लकड़ी: अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित

एक बार बादशाह अकबर और बीरबल शाही बाग में सैर कर रहे थे। कुछ देर सैर के बाद दोनों बैठकर बातें करने लगे। अक्सर जब बादशाह अकबर और बीरबल दोनों अकेले होते थे, आपस में मनोरंजन करते रहते थे।

तभी अकबर को अपने पैर के पास जमीन पर पड़ी लकड़ी दिखी। अकबर को बीरबल के साथ विनोद करने की सूझी। उन्होंने लकड़ी हाथ में उठाई और कहा कि “बीरबल क्या तुम इस लकड़ी को बिना काटे छोटा कर सकते हो?”

तभी बीरबल ने देखा कि एक व्यक्ति लकड़ियों का गट्ठर सिर पर उठाए, शाही बगीचे के पास वाले राजमार्ग से गुजर रहा था। बीरबल ने कहा कि “ये बहुत आसान है, हुजूर”

इतना कहकर बीरबल उस व्यक्ति के लकड़ियों के गट्ठर से एक बड़ी लकड़ी को निकाल लाया और अकबर के पास ले जाकर दोनों लकड़ियों को जमीन पर रख दिया। (अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित)

अब पहले वाली लकड़ी बिना काटे ही दूसरी लकड़ी से छोटी दिख रही थी। बादशाह अकबर बीरबल की चतुराई देखकर मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए।

इसका बच्चा या उसका: अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित

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बादशाह अकबर का दरबार लगा हुआ था। बादशाह एक-एक करके सभी की समस्याओं का हल कर रहे थे। अपनी समस्या हाल होते ही लोग बादशाह की जय-जयकार करते।

तभी दरबार में दो हमशक्ल महिलाएं एक छोटे बच्चे के साथ रोती-चीखती उपस्थित हुई। दोनों कहने लगी कि बादशाह मुझे मेरा बच्चा दिला दीजिए। मंत्रियों ने दोनों महिलाओं को शांत करवाया।

जब दोनो से पूरा मामला पूछा गया तो पहली महिला ने बताया कि “बादशाह, मेरा नाम इमली है और हम दोनो जुड़वां बहिनें है। इस बच्चे को मैने जन्म दिया है लेकिन ये मेरी चालाक बहन मेरे बच्चे पर अपना हक जता रही है। बादशाह कृपा करके मुझे मेरा बच्चा दिला दीजिए।”

तभी दूसरी महिला ने अपना नाम लालकी बताया और कहा कि “जहांपनाह ये बच्चा मेरा है और ये चालबाज औरत मेरा बच्चा मुझसे छीनना चाहती है। कृपा करके आप इस महिला को दंडित करे और मुझे मेरा बच्चा ले जाने की अनुमति दे।”

अब सारे दरबारी चिंता में पड़ गए कि आखिरकार कैसे पहचाना जाए कि ये बच्चा इसका है या उसका? सभी गांव वाले भी असमंजस थे क्योंकि दोनों बहनों की शक्ल समान थी। (अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित)

ऐसे भी बहुत सारे दरबारी थे, जिन्हें बीरबल से ईर्ष्या थी। क्योंकि सभी दरबारियों में से बीरबल बादशाह का प्रिय था। हर कोई दरबारी बादशाह की आंख का तारा बनना चाहता था।

आज दरबारियों को बीरबल को नीचे दिखाने का मौका मिल गया था। एक दरबारी ने कहा कि “बादशाह हमारे साथी बीरबल इतने चतुर है। साथ ही, उन्हें दरबार में भी इतना बड़ा ओहदा प्राप्त है तो आपको इस समस्या को सुलझाने का कार्य भी बीरबल को ही सौंपना चाहिए। आखिर हम भी तो देखे कि बीरबल इस ओहदे के लायक सच में है भी या नहीं।”

सभी दरबारियों ने उस दरबारी की बात पर हां में हां मिलाई। बादशाह अकबर तो पहले ही बीरबल की तीव्र बुद्धि से वाकिफ थे। साथ ही, ये कहने के पीछे उन्हें दरबारियों की मनोदशा भी पता चल रही थी।

बादशाह अकबर ने ये पूरा मामला बीरबल को सौंप दिया और कहा कि बीरबल इस पूरे मामले का समाधान दो दिनों के भीतर हो जाना चाहिए। बीरबल ने बादशाह के आदेश को माना। 

अगले दिन सुबह बीरबल ने दोनों महिलाओं को दरबार में बुलाया और बच्चे को उन दोनो के बीच रख दिया। अब बीरबल ने दोनों से कहा कि आप दोनों में से जो भी इस बच्चे को छीन लेगी, ये बच्चा उसी का माना जाएगा।

इतना सुनते ही इमली और लालकी बच्चे को एक-दूसरे से झपटने लगी। बच्चा जोर-जोर से रो रहा था। सारे दरबारी इस तमाशे को देखकर मन ही मन खुश हो रहे थे। वो जानते थे कि इस प्रकार से बच्चे की असली माता का पता नहीं लगाया जा सकता। (अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित)

बादशाह अकबर को भी बीरबल की बुद्धि देखकर विस्मय हो रहा था। अभी भी दोनों महिलाएं बच्चे को छीनने में लगी थी। बच्चे को इस तरह बिलखता देखकर इमली ने हार मान ली और बच्चे को लालकी ने छीन लिया।

लालकी ने खुशी से कहा “देखिए चतुर बीरबल, मैने सिद्ध कर दिया कि ये बच्चा मेरा ही है।”

तभी बीरबल ने सैनिकों को आदेश दिया कि लालकी को गिरफ्तार कर लिया जाए। ये देखकर सभी लोग दंग रह गए। बीरबल ने कहा “जहांपनाह, लालकी ही मुजरिम है। ये बच्चा वास्तव में इमली का ही है।”

ये सुनकर सभी दरबारी एक ही सुर में अलापने लगे कि “ये कैसा न्याय है, जहांपनाह? इस औरत ने बीरबल की चुनौती जीती है। फिर भी, बीरबल इसी को दोषी बता रहे है।”

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बादशाह भी बीरबल से इसका जवाब जानना चाहते थे। बादशाह को मौन देखकर बीरबल ने कहा “जहांपनाह, कोई भी मां अपने बच्चों को तकलीफ नहीं दे सकती। इसीलिए बच्चे को बिलखता देखकर इमली ने हार मान ली। जिस तरह से लालकी बच्चे को छीन रही थी, उससे साफ पता चलता है कि लालकी को बच्चे की कोई परवाह नहीं थी।”

बीरबल की तेज बुद्धि से सभी विस्मित थे। बादशाह अकबर ने सैनिकों को आदेश दिया कि लालकी को कारागार में डाल दिया जाए। तभी लालकी घुटनों के बल बादशाह से माफी मांगने लगी। उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली। लेकिन सैनिकों आदेश के मुताबिक उसे लेकर चले गए।

इमली बादशाह अकबर और बीरबल की जय-जयकार करने लगी। सभी दरबारी अपना सा मुंह लेकर बैठे थे लेकिन अकबर बीरबल को गर्व की नजरों से देख रहे थे।

सबसे बड़ा पद किसका: अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित

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बीरबल अकबर के प्रमुख वजीर और अकबर के नवरत्नों में भी शामिल थे। साथ ही, अकबर के दिल में भी बीरबल का विशेष स्थान था।

वैसे तो सभी दरबारी अकबर की नजरों में बीरबल का महत्व देखकर जलते थे। पर जलने वालों में सबसे ऊपर बेगम साहिबा का भाई अर्थात बादशाह का साला था। बेगम साहिबा अपने भाई को दरबार में बीरबल का पद दिलाना चाहती थी।

यदि बादशाह अपनी बेगम का कहना नहीं मानते तो उन्हें उनकी नाराजगी का सामना करना पड़ता इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई। अगले दिन बादशाह ने अपने साले और बीरबल दोनों को अपने पास बुलाया। आप अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित पढ़ रहे हैं।

बादशाह अकबर ने दोनों को साधारण दर्पण दिए और कहा कि तुम दोनो में से जो भी इस दर्पण को सेठ घमंडीलाल को सबसे ऊंचे दामों में बेचकर आयेगा, उसे ही दरबार में सबसे बड़ा पद दिया जाएगा। लेकिन ध्यान रहे कि इस कम को करते वक्त आपको अपनी पहचान का इस्तेमाल नहीं करना है।

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सेठ घमंडीलाल अपने नाम की तरह ही बहुत ही घमंडी और कंजूस था। उससे किसी भी चीज का मोल-भाव करना किसी के बस की बात नहीं होती थी।

सबसे पहले अकबर के साले साहब सेठ घमंडीलाल के पास गए। उन्होंने उसे बहुत ही बहुमूल्य नक्काशी वाला दर्पण बताकर, बेचने की बहुत कोशिश की लेकिन सेठ ने वो दर्पण खरीदने के लिए साफ मना कर दिया। अब सेल साहब के पास कोई चारा नहीं था तो वे लौट आए और बादशाह को पूरी कहानी सुनाई।

अगले दिन बीरबल को उस दर्पण को बेचने जाना था। उन्होंने दर्पण के नक्काशीदार फ्रेम को निकल दिया। अब उन्होंने एक जादूगर का भेष बदलकर एक सराय में शरण ली और पूरे शहर में ये बात फैला दी कि ईरान से एक जादूगर आया है, जिसके पास एक ऐसा दर्पण है जिनमें वो अपने मरे हुए पूर्वजों की शक्ल देख सकते है। ईरान से आया वो जादूगर इस दर्पण को बेचेगा।

अगले दिन बीरबल शहर में बीचों बीच चौक पर अपने दर्पण के साथ पहुंच गया। उसने दर्पण को पर्दे से ढक रखा था। सेठ घमंडीलाल ने जब ये बात सुनी तो वो तुरंत चौक पर पहुंचा और दर्पण खरीदने की पेशकश करने लगा।

वहां बहुत सारे लोग जमा थे। दर्पण का दाम 10 हजार मुहरों तक लग चुका था। लेकिन घमंडीलाल के आते ही सभी बोली लगाने वाले रुक चुके थे। क्योंकि उन्हें पता था कि घमंडीलाल के सामने वो इस दर्पण को नहीं खरीद सकते। घमंडीलाल ने भी 15 हजार मुहरों की बोली लगा दी थी।

तभी बीरबल ने घोषणा करी कि आप इस दर्पण में अपने मरे हुए पूर्वजों की शक्ल देख सकते है। लेकिन आपको उनकी शक्ल तभी दिखाई देगी यदि आपके असली पूर्वज वो ही है जिन्हें आप अपने असली पूर्वज मानते आए है। यदि वो आपके असली पूर्वज नहीं है, जिन्हें आप मानते आए हो तो आपको किसी के दर्शन नहीं होंगे।

सेठ घमंडीलाल को पूरा यकीन था कि उसके पूर्वज असल में वहीं है तो वो पीछे नहीं हटा। अब बीरबल ने सेठ को दर्पण के सामने खड़ा किया और दर्पण से पर्दा हटा लिया।

आशा है की आप अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित का आनंद ले रहे है।

सेठ घमंडीलाल को अपने अलावा उस दर्पण में किसी की भी शक्ल नहीं दिख रही थी लेकिन अब उसके पास कोई और उपाय भी नहीं था। जब बीरबल ने पूछा कि क्या आप अपने पूर्वजों को देख पा रहे तो लाचार सेठ ने अपनी बेइज्जती के डर से हामी भरी और दर्पण खरीद लिया।

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आखिरकार बीरबल ने वो दर्पण 15 हजार मुहरों में सेठ घमंडीलाल को बेच दिया था। अगले दिन, बीरबल बादशाह के पास पहुंचा और पूरा वाकया सुनाया। बादशाह अकबर, बीरबल की चतुर बुद्धि से बहुत प्रसन्न थे। बीरबल का पद भी दरबार में बना रहा।

निष्कर्ष

इस लेख में मैने 3 अकबर बीरबल की कहानी चित्र सहित प्रस्तुत की है। उम्मीद है कि तीनों ही अकबर बीरबल की कहानियां आपको रोचक लगी होगी। हमारी कहानियों पर अपने विचार जरूर साझा करे और यदि आप भी अपनी कोई कहानी प्रकाशित करवाना चाहते है तो हमें हमारे ईमेल पते पर भेजे।

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