बगुला और सियार की कहानी: Bagula aur Siyar ki kahani

बगुला और सियार की कहानी: नमस्ते, आज के लेख में मैं आपके लिए बगुला और सियार की कहानी लेकर आयी हूं। बगुला और सियार की कहानी में बगुला खुद को चतुर समझता है लेकिन बाद में उसका सामना सियार से होता है। बगुला और सियार की कहानी में पूरा पढ़िए कि आखिर में कौन जीतता है?

बगुला और सियार की कहानी । heron and jackal story in hindi

कुछ समय पहले की बात है, एक बेहद सुंदर जंगल था। उस जंगल में एक बगुला रहता था। वह बगुला बेहद चालाक था। वह जंगल में नदी के किनारे रहता था और वहां पर हर रोज छोटे-छोटे जीवों को पकड़ कर खा लेता था। बगुले को हर रोज नदी से मछलियां पकड़ने में बेहद परेशानी होती थीं।

बगुला हर रोज की इस समस्या से अब बेहद परेशान हो चुका था। बगुला एक दिन नदी किनारे बैठ कर यह सोचने लगता हैं कि “ऐसा क्या किया जाए, जिससे बिना किसी अत्यधिक मेहनत के मुझे खाना मिल जाए?”

काफी देर सोचने के बाद अब बगुले को एक योजना सुझती हैं। बगुला नदी की मछलियों को फसाने के लिए उन्हें एक झूठ बोलता है। बगुला नदी के किनारे पर जाकर, नदी की मछलियों से कहता हैं, “ओ.. मछली रानी.. क्या तुम सभी यह जानती हों कि बहुत जल्दी सूखा पड़ने वाला है। तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं।”

मछलियां उन्हें पूछती हैं कि, “तुम यह सब कैसे जानते हो? और तुम हमारी मदद कैसे करोगे?” बगुला उन्हें कहता हैं, “मैं बाहर रहता हूं। मुझे तुमसे ज्यादा पता है। मैं यहां तुम सब को बचाने आया हूं। तुम सभी हर रोज थोड़ी-थोड़ी मेरी चोंच में आकर बैठ जाना। मैं तुम्हें एक सुरक्षित जलाशय में ले जाऊंगा। वो जलाशय सूखा पड़ने पर भी नहीं सूखेगा। इससे सूखा पड़ने पर भी तुम्हें कुछ नहीं होगा।”

सभी मछलियां बेहद मासूम थीं। वे सभी बगुले की चाल को समझ नहीं पाती है। वे बगुले की बात मान लेती हैं। अब मछलियां एक-एक करके बगुले की चोंच में बैठने लगती है। बगुला कुछ मछलियों को अपनी चोंच में पकड़ कर ले जाता और उन्हें खा जाता था।

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बगुला वापस आकर बाकी मछलियों से कहता कि उसने उन मछलियों को सुरक्षित जलाशय में छोड़ दिया है। अब सूखा पड़ने पर भी उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी।

अब हर रोज मछलियां बगुले की चोंच में आकर बैठ जाती और बगुला एक जगह पर छुप कर उन्हें खा जाता था। बगुले की इस चालाकी से उसे हर रोज खाना ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ती थी।

उस जंगल में एक सियार भी रहता था। वह एक दिन बगुले को यह सब करता हुआ देख लेता है। सियार देखता है कि नदी की मछलियां आराम से बगुले की चोंच में बैठ जाती है और बगुला अन्य जगह पर छुप कर उन्हें खा रहा था। सियार को कुछ भी समझ नहीं आता है।

अब सियार बगुले के पास जाकर उससे पूछता है, “अरे बगुला भईया! मैं कब से देख रहा हूं। ये मछलियां खुद का शिकार करवा रही हैं। ऐसा कैसे हो सकता हैं?” बगुला हंसने लगता हैं। वह सियार से कहता हैं, “क्यों सियार भईया, तुम्हे क्या लगता हैं, केवल तुम ही चालक हो? तुम्हें पता है कि मैं तुमसे ज्यादा होशियार हूं।”

सियार बगुले से पूछता है, “वो कैसे?” अब बगुला हँसते हुए सियार को बताता हैं कि उसने कैसे इन नदी की मछलियों को अपनी बातों में फंसाकर, बिना किसी मेहनत के रोज़ खाना खा लेता है। बगुला कहता हैं, “सियार भईया, ये मछलियां बेहद भोली हैं। मैंने इन्हें कहा कि सूखा पड़ने वाला है, तुम सभी मेरी चोंच में आ जाओ। मैं तुम्हें एक सुरक्षित जगह पर ले जाऊंगा और इन मछलियों ने खुद को मेरा शिकार बना दिया।”

अब सियार को सब कुछ समझ आ जाता हैं। लेकिन सियार बगुले से ज्यादा चालक था। सियार कहता हैं, “चाहे जो भी हो, तुम मुझसे ज्यादा चालाक नहीं हो सकते हो।” बगुला सियार से कहता हैं, “ऐसा है तो साबित करो।” सियार कुछ भी नहीं कहता है।

सियार को अब एक योजना सुझती हैं। वह अपनी चालाकी साबित करने के लिए बगुले को फंसाने के बारे में सोचता है। वह बगुले के साथ दोस्ती कर लेता हैं। काफी समय बीतने के बाद अब बगुला और सियार बेहद अच्छे दोस्त बन जाते हैं। सियार अपनी योजना के अनुसार बगुले का भरोसा जीत लेता हैं।

अब एक दिन सियार बगुले को कहता हैं, “बगुले, मैं कल तुम्हें मेरे घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करता हूं। मुझे यकीन है कि तुम मेरे दोस्त हो और तुम जरूर आओगे।” बगुला सियार की चाल समझ नहीं पाता है। वह सियार से कहता हैं, “तुम चिंता मत करो। मैं जरूर आऊंगा।”

अब अगले दिन बगुला सियार के घर भोजन के लिए चला जाता हैं। वहां पहुंच कर बगुला सियार से पूछता है, “कैसे हो दोस्त? आज तुमने मेरे लिए खाने में क्या बनाया है?” सियार कहता हैं, “मैं अच्छा हूं। आज मेरा दोस्त खाने पर आया है। इसलिए मैंने तुम्हारे लिए एक बेहद स्वादिष्ट सूप बनाया है। चलो साथ बैठ कर खाते है।”

अब सियार और बगुला दोनों साथ में खाना खाने बैठ जाते है। वे दोनों खाना खाने लगते हैं। बगुला सियार से कहता हैं, “वाह! तुमने तो बहुत स्वादिष्ट सूप बनाया है।” अब सियार और बगुला दोनों खाना खा लेते हैं। खाना खाने के बाद सियार अपनी योजना को पूरा करने लगता हैं।

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वह बगुले से कहता हैं, “बगुला, मैंने तुम्हारे लिए एक गिफ्ट लिया है। तुम यहां रुको मैं लेकर आता हूं।” यह कहकर सियार अंदर चला जाता हैं। अब बगुला काफी देर वहां बैठ कर सियार का इंतजार करता है।

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कुछ देर बाद सियार (jackal) पीछे से आकर बगुले पर हमला कर देता हैं। हमला करके सियार बगुले को मार डालता है। अब सियार बगुले को मार कर खा जाता हैं। सियार बेहद खुश होता हैं। वह सोचता है कि उसने बगुले को अपनी बातों में फंसा कर उसका शिकार कर लिया और उसने यह साबित कर दिया कि वो बगुले से ज्यादा चालाक हैं।

बगुला और सियार की कहानी से शिक्षा 

बगुला और सियार की कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती हैं कि हमें कभी भी किसी पर भी अंधा विश्वास नहीं करना चाहिए। हमें कभी भी दूसरों को धोखा नहीं देना चाहिए।

साथ ही, हमें बगुला और सियार की कहानी से शिक्षा मिलती है कि जैसा हम दूसरों के साथ करते हैं, वैसा ही हमारे साथ भी होता है। जरूरी नहीं होता हैं कि हमें कोई ओर छल नहीं सकता, हमसे अधिक चालक भी कोई हो सकता हैं।

Conclusion: आपको बगुला और सियार की कहानी अच्छी लगी तो हमे कमेन्ट करके जरूर बताए। साथ ही, यदि आप बगुला और सियार की कहानी की तरह और भी कहानियां पढ़ना चाहते हैं तो कृपया हिंदी प्रेरणादायक कहानियां पढ़े।

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