कृष्ण भगवान की कहानी हिंदी में: 1 कहानी जो आपका नजरिया बदल देगी

Lord Krishna story in hindi- दोस्तों, आज के लेख में मैं आपके लिए कृष्ण भगवान की कहानी हिंदी में लेकर आई हूं। बहुत सारे लोगों को शिकायत होती है कि उनके साथ बुरा क्यों होता है? लेकिन आज की श्री कृष्ण भगवान की कहानी में आप जानेंगे की इन बुरी घटनाओं में भी हमारे लिए अच्छाई छुपी होती है। आइए पढ़ते हैं कृष्ण भगवान की कहानी हिंदी में –

कृष्ण भगवान की कहानी हिंदी में: Lord Krishna story in hindi

एक बार की बात है। एक गांव में एक पशुपालक अपनी पत्नी के साथ रहता था। पशुपालक का नाम गोवर्धन था और उसकी पत्नी का नाम दामिनी था। गोवर्धन अपनी गायों को पास के पहाड़ों पर चराने के लिए ले जाता और सूरज ढ़लने पर वापस गांव लौट आता था।

एक दिन अपनी गायों को चराने ले जाते समय गोवर्धन ने अपनी पत्नी से कहा कि “दामिनी, मैं हमारी गायों को चराने के लिए ले जा रहा हूं। शाम को वापस लौटूंगा। तुम अपना ख्याल रखना।”

दामिनी ने कहा, “अरे, आप बिना कुछ खाए जा रहे हैं, पहले नाश्ता करिए, उसके बाद चले जाना। मैंने नाश्ता पहले ही तैयार कर रखा है।”

गोवर्धन ने कहा, “अरे हां भाई, नाश्ता तो मैं करके जाऊंगा। लेकिन आज तुम मेरे साथ वह ताजा मक्खन भी भेज देना जो आज सुबह तुमने मिट्टी के बर्तन में निकाला था।”

दामिनी ने आश्चर्य से कहा कि “आप तो कभी मक्खन खाते नहीं। तो फिर आज क्या करोगे मक्खन का? आज किसी ने मक्खन मंगवाया है क्या?”

“अरे किसी ने नहीं मंगवाया। जब मैं रोजाना गायों को चराने जाता हूं तो पहाड़ों के रास्ते में एक भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को देखता हूं। कोई भी उन्हें कुछ भी अर्पित नहीं करता। तो मैंने सोचा कि क्यों ना मैं आज उनका प्रिय भोजन मक्खन उनको अर्पित करूं। इससे भगवान श्री कृष्ण बहुत खुश हो जाएंगे। हमारे पास और तो उन्हें चढ़ाने लायक कुछ है नहीं, लेकिन कम से कम हम मक्खन तो चढ़ा ही सकते हैं। सही है ना?” गोवर्धन ने कहा।

दामिनी ने कहा, “यह तो बहुत अच्छा विचार है। मैं आपके साथ मक्खन भेज दूंगी। लेकिन साथ-साथ आप हमारी गायों का भी ध्यान रखना। कहीं वे इधर-उधर ना चली जाए। आजकल आप कुछ ज्यादा ही आध्यात्मिक हो रहे हैं।”

गोवर्धन ने हां में सर हिलाया और नाश्ता करने के लिए बैठ गया। गोवर्धन ने नाश्ता किया और मक्खन, दोपहर का भोजन तथा अपनी गायों को लेकर चल पड़ा।

वह हर रोज रास्ते में एक विशाल बरगद के पेड़ के नीचे श्री कृष्ण जी की मूर्ति के पास रुकता। श्री कृष्ण जी के सामने प्रार्थना करता और फिर उनके साथ अपनी पूरी दिनचर्या की बातें करता।

हमेशा की तरह आज भी गोवर्धन ने यही किया। गोवर्धन ने प्रार्थना करते हुए कहा, “हे कृष्ण, जंगल के सभी खतरों से मेरी गायों को बचाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आपकी कृपा से मेरा जीवन बहुत खुशहाल है। मुझ पर अपनी कृपा बनाए रखने के लिए आपका धन्यवाद। आज मैं आपके लिए अपने घर से ताजा-ताजा स्वादिष्ट मक्खन लेकर आया हूं। यह लीजिए, आप खाकर देखिए। बिल्कुल ताजा मक्खन है, मेरी बीवी ने खुद निकाला है।” इतना कहते हुए गोवर्धन ने वह मक्खन का घड़ा मूर्ति के सामने रख दिया और अपनी गायों को लेकर आगे पहाड़ों की ओर चला गया।

गोवर्धन पूरे दिन पहाड़ों पर अपनी गायों को चराता रहा और सूरज ढ़लते ही वापस अपने गांव की ओर लौटने लगा। गांव की ओर जाते हुए जब उसने कान्हा जी को देखा तो उन्हें प्रणाम किया। तभी उसका ध्यान पास पड़े खाली मिट्टी के घड़े पर गया तो वह आश्चर्यचकित हो गया। मिट्टी का घड़ा बिल्कुल खाली था। गोवर्धन ने मन ही मन सोचा कि श्री कृष्ण जी ने उसका प्रसाद स्वीकार कर लिया है। वह मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ।

गोवर्धन ने कहा, “हे श्री कृष्ण, आखिरकार आपने मुझ पर दया की। आप मेरी सारी बातें सुन लेते हैं। आज आपने मेरी भेंट स्वीकार करके मुझ पर बहुत बड़ी कृपा की है। अगर आप स्वीकार करें तो मैं रोजाना आपको शुद्ध घर का निकाला हुआ मक्खन अर्पित करूंगा।” गोवर्धन लगातार भगवान श्री कृष्ण का धन्यवाद किये ही जा रहा था।

भगवान श्री कृष्ण को गोवर्धन की मासूमियत और उसका शुद्ध भाव से अपने प्रति स्नेह भा गया। श्री कृष्ण गोवर्धन से इतने प्रसन्न हो गए कि वह खुद बोले, “गोवर्धन हमें तो मक्खन बहुत पसंद है, फिर भला हम इसे स्वीकार क्यों नहीं करेंगे।”

गोवर्धन भगवान श्री कृष्ण की आवाज सुनकर चौंक गया। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि यह सब हकीकत में हो रहा है। उसने प्रसन्नता से कहा, “भगवान श्री कृष्ण, क्या आप स्वयं मुझसे बात कर रहे हैं। मैं तो आपकी आवाज सुनकर ही धन्य हो गया, पर अगर आप खुद ही बोल रहे हैं तो मैं आपको देख क्यों नहीं सकता। अगर आप मुझे दर्शन दे दे तो मैं तो धन्य हो जाऊंगा प्रभु।”

गोवर्धन की इच्छा अनुसार भगवान श्री कृष्ण उसके सामने प्रकट हो गए। गोवर्धन पूरी तरह से आश्चर्यचकित हो गया और कहा, “हे प्रभु, आज तो मैं धन्य हो गया। आप साक्षात मेरे सामने खड़े है। मैं आपका बहुत बड़ा भक्त हूं। मैं आपको प्रतिदिन ताजा-ताजा मक्खन का भोग लगाऊंगा। इसके अलावा आप बताइए कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?”

भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “हमें तुम्हारे द्वारा भोग लगाए जाने वाले मक्खन के अलावा और कुछ भी नहीं चाहिए। तुम्हारी भक्ति से हम बहुत प्रसन्न हुए हैं और तुम्हें वरदान देना चाहते हैं। तुम जो चाहे वो मांग सकते हो।”

“हे कृष्ण, मेरे पास जो कुछ है, मैं उसमें संतुष्ट हूं। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। बस मैं रोजाना आपके दर्शन करना चाहता हूं।” गोवर्धन ने कहा।

“ठीक है, मैं तुम्हें रोजाना दर्शन दूंगा। लेकिन एक शर्त है कि तुम यह बात किसी को नहीं बताओगे। क्या तुम ऐसा कर सकोगे?” भगवान श्री कृष्ण ने पूछा।

“मैं आपसे वादा करता हूं कि मैं यह बात किसी को नहीं बताऊंगा। अब अगर आप अनुमति दें तो मैं चलूं। क्योंकि घर पर बछड़े अपनी माता का इंतजार कर रहे होंगे। उनके बिना वे विचलित होते होंगे, प्रभु।” गोवर्धन ने हाथ जोड़कर कहा।

“जरूर जाओ गोवर्धन,  लेकिन कल हमारे लिए ताजा मक्खन लेकर आना मत भूलना।” भगवान श्री कृष्ण ने हंसते हुए कहा।

गोवर्धन ने उत्तर दिया, “जरूर ले आऊंगा प्रभु।”

“ठीक है, गोवर्धन अब तुम जाओ।” इतना कहकर श्री कृष्ण अन्तर्ध्यान हो गए और गोवर्धन अपनी गायों को लेकर घर लौट आया। आज की घटना के बारे में उसने अपनी पत्नी तक को नहीं बताया।

अगले दिन वह फिर से ताजा मक्खन का घड़ा लेकर निकल पड़ा। वह घड़ा उसने श्री कृष्ण जी की मूर्ति के सामने अर्पित करके श्री कृष्ण भगवान से प्रार्थना करने लगा, “भगवान श्री कृष्ण, कृपया मेरी भेंट को स्वीकार करें। मैं आपके लिए मक्खन लेकर आया हूं।”

इतना सुनते ही भगवान श्री कृष्ण उसके सामने प्रकट हो गए। गोवर्धन के मन में एक शंका थी और उसने भगवान श्री कृष्ण से पूछ ही लिया। कहा, “प्रभु एक बात बताइए, आप हम सब लोगों के लिए हर वक्त हाजिर है। हमेशा खड़े रहते हैं और अपने मुंह से एक शब्द भी नहीं बोलते। आप थक जाती होंगे ना? आपको कभी-कभी आराम भी कर लेना चाहिए। मैंने ठीक कहा ना, प्रभु?”

“गोवर्धन, तुम पृथ्वी लोक के मनुष्य भी अजीब होते हो। जब तक भगवान खुद जवाब नहीं देते तब तक तुम कहते हो कि भगवान का अस्तित्व नहीं है और अब जब मैंने तुम्हें दर्शन दिए तो तुम हमें ही सुझाव देने लगे। बेहतर होगा कि कल से हम तुम्हें दर्शन ना दे।” भगवान श्री कृष्ण ने कहा।

“हे प्रभु, कृपया ऐसा ना करें। मेरी गलती हो गई। मुझे आपकी चिंता होती है कि आप हर समय खड़े रहते हैं। बिल्कुल आराम नहीं करते हैं। आपको थोड़ी देर बैठने तक को समय नहीं मिलता। आप थक जाते होंगे ना?” गोवर्धन ने बहुत ही उदास मन से कहा।

भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “तुम्हारी भक्ति के अलावा तुम्हारी मासूमियत ने भी हमारा दिल जीत लिया है। तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर हम तुम्हें एक उदाहरण देकर समझाते हैं। क्या तुम उदाहरण सुनने के लिए तैयार हो?”

गोवर्धन ने हां में अपना सिर हिलाया। तो भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “इस स्थान पर हम प्रतिदिन विभिन्न प्रकार के भक्तों को देखते हैं। हम चाहते हैं कि आज तुम भी यहां रुककर उन सभी प्रकार के भक्तों को देखो। लेकिन एक शर्त पर कि तुम हमारी उपस्थिति के बारे में उन्हें नहीं बताओगे और किसी भी बात की प्रतिक्रिया भी नहीं दोगे और चुपचाप देखते रहोगे कि क्या हो रहा है? ठीक है?”

“पर प्रभु अगर मैं सारा दिन यही खड़ा रहूं तो मेरी मवेशियों का क्या होगा? उनका ध्यान कौन रखेगा?” गोवर्धन ने हाथ जोड़कर कहा।

“हम तुम्हारी मवेशियों की देखभाल करेंगे। इसकी चिंता मत करो। जाओ, पेड़ के पीछे छुप कर बैठ जाओ।” श्री कृष्ण ने आश्वासन देते हुए कहा।

इतना कहकर भगवान श्री कृष्ण अंतर्ध्यान हो गए और गोवर्धन पेड़ के पीछे जाकर इंतजार करने लगा। वह सोच रहा था कि भगवान श्री कृष्ण उसकी शंका को दूर कैसे करेंगे।

कुछ समय बाद एक व्यापारी पैसों से भरी थैली लेकर वहां पर आया और कहने लगा, “हे प्रभु, मुझे बहुत खुशी है कि आपने मुझे इतना बड़ा वरदान दिया और आज मेरे प्रभु का उत्तर भी मुझे समझ आ रहा है।” वह पैसे की थैली को मूर्ति के सामने रखकर वहां प्रार्थना करने लगा। गोवर्धन पेड़ के पीछे खड़े रहकर यह सब कुछ देख रहा था।

व्यापारी आगे बोला, “हे सर्वशक्तिमान, मैंने अभी-अभी नया कारोबार शुरू किया है। मुझे उसमें नए-नए मुनाफे का आशीर्वाद दें।” उसने अपनी प्रार्थना पूरी की और अनजाने में ही वह बिना पैसों की थैली उठाए, वहां से चला गया।

गोवर्धन यह सारा माजरा देख रहा था। उसने यह भी देखा कि वह व्यापारी पैसों की थैली वही भूलकर चला गया। लेकिन वह भगवान श्री कृष्ण की किसी भी बात पर प्रतिक्रिया न देने की शर्त पर बंधा हुआ था तो उसने उस व्यापारी से कुछ भी नहीं कहा।

कुछ ही देर बाद एक गरीब आदमी भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के सामने आकर खड़ा हो गया और प्रार्थना करने लगा, “प्रभु, मैं बहुत गरीब हूं। मेरे परिवार के पास कुछ भी खाने के लिए नहीं है और हम कई दिनों से भूखे हैं। मैं यहां आपकी शरण में आया हूं क्योंकि आप लोगों के उद्धारकर्ता है। मुझे कोई ऐसा मार्ग दिखाएं जिससे मैं अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकूं।”

जैसे ही उस गरीब आदमी ने अपनी प्रार्थना पूरी की, उसे भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के पास एक पैसों से भरी थैली दिखाई दी। वह खुश हो गया और बोला, “हे भगवान, आपने इतनी जल्दी मेरी इच्छा पूरी कर दी। अब मैं इन पैसों से अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता हूं। आप बहुत दयालु है, प्रभु।”

वह गरीब आदमी पैसों से भरी थैली लेकर खुश होता हुआ वहां से निकल गया। इसके तुरंत बाद ही वहां एक और भक्त आया। उसका नाम भोलाराम था, जो की एक सपेरा था।

वह भी प्रार्थना करने लगा, “हे श्री कृष्ण, मैं अपने सांपों को पकड़ने और लोगों की जान बचाने के काम से संतुष्ट हूं। लेकिन मुझे कभी-कभी डर लगता है कि मेरे जीवन का कोई भी भरोसा नहीं है और मेरे परिवार में कमाने वाला कोई भी नहीं है। इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप मुझे हर खतरे से बचाए रखें। यही मेरी आपसे प्रार्थना है।”

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गोवर्धन अभी यह सारी घटना देख रहा था, तभी वह व्यापारी अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ पैसों की थैली वापस लेने आया। उसने देखा कि पैसों से भरी वह थैली गायब है और भोलाराम वहीं बैठकर प्रार्थना कर रहा है। उसने इसके लिए सपेरे को ही दोषी मान लिया।

“मैं पैसों की थैली यहीं पर छोड़ गया था। अब वह थैली यहां दिखाई नहीं दे रही है। जरूर इस आदमी ने ही वह थैली चुराकर उसमें से पैसे ले लिए होंगे।” व्यापारी ने कहा। इतना सुनते ही सुरक्षा कर्मियों ने भोलाराम को पकड़ लिया।

“मेरी बात पर विश्वास करो। मैं निर्दोष हूं। जब मैं यहां आया तो यहां पर कोई थैली नहीं थी।” भोलाराम ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।

“क्या कहा, पैसे की थैली ही नहीं थी। मैं कुछ देर पहले ही थैली यहीं छोड़ कर चला गया था। यहां तुम्हारे अलावा कोई आता-जाता भी नहीं दिखाई दिया। तुम झूठ बोल रहे हो। बताओ पैसे कहां छुपाए है तुमने?” व्यापारी ने क्रोधित होकर कहा।

“मैंने सचमुच पैसों से भरी कोई थैली नहीं देखी है। मैं निर्दोष हूं। मुझे छोड़ दो।” भोलाराम उनसे छोड़ देने के लिए विनती करता रहा। गोवर्धन को भोलाराम के लिए बहुत बुरा लग रहा था।

“हे भगवान, ये लोग तो बेवजह एक निर्दोष आदमी को फंसा रहे हैं। पैसों की थैली तो उस गरीब आदमी ने ले ली है। प्रभु आप तो सब कुछ जानते हैं, अगर आप उसे नहीं बचाएंगे तो मैं उन लोगों को सब कुछ बता दूंगा।” गोवर्धन ने मन ही मां विनती की लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने कोई उत्तर नहीं दिया।

तो भोलाराम ने भगवान श्री कृष्ण से किया हुआ वादा तोड़ दिया और उन लोगों के सामने जाकर सारी सच्चाई बता दी। भोलाराम ने कहा, “भाई साहब, इसे छोड़ दो। इसने पैसों से भरी थैली नहीं ली है। यह निर्दोष है।”

“क्या कहा? तुम कौन हो और तुम्हें कैसे पता कि यह निर्दोष है?” व्यापारी ने तेज आवाज में पूछा।

“मैं पशु पालक हूं। मेरा नाम गोवर्धन है और मैंने यहां से एक गरीब आदमी को पैसों की थैली लेते हुए देखा है और वह कुछ ही देर पहले उत्तर दिशा में गया है। जल्दी करो, वह अभी तक ज्यादा दूर नहीं गया होगा। आपको वह रास्ते में ही मिल जाएगा।”

इतना सुनते ही व्यापारी ने अपने सुरक्षाकर्मियों को चलने का आदेश दिया। सुरक्षाकर्मियों ने उस गरीब व्यक्ति को पकड़ लिया और सारे पैसे ले लिए। उन्होंने निर्दोष भोलाराम को छोड़ दिया। भोलाराम गोवर्धन का आभार व्यक्त करके वहां से चला गया। गोवर्धन बहुत खुश था क्योंकि उसने किसी निर्दोष को बचाया था।

उसने अब भगवान श्री कृष्ण को याद किया और कहा कि “प्रभु, आप अब दर्शन दे सकते हो क्योंकि अब यहां कोई नहीं है।” गोवर्धन के याद करने पर भगवान श्री कृष्ण फिर से उसके सामने प्रकट हुए।

गोवर्धन ने भगवान के सामने फिर से अपना संदेह प्रकट किया, “प्रभु आप चुप क्यों थे जबकि यह सारी घटना आपके ही सामने हुई थी। जिस तरह मैंने उन्हें सच्चाई बताई, आप भी तो भोलाराम को बचा सकते थे। आपने ऐसा क्यों नहीं किया?”

भगवान श्री कृष्ण: “गोवर्धन, क्या तुम्हें एहसास है कि तुमने क्या किया है?”

गोवर्धन: “मैंने एक निर्दोष आदमी को बचाया है। भोलाराम निर्दोष था। उसने वह पैसों की थैली नहीं उठाई थी। मैंने अपनी आंखों से देखा था कि उस गरीब आदमी ने वह पैसों की थैली उठाई थी। वे लोग निर्दोष भोलाराम को पकड़ कर ले जा रहे थे तो मैंने आपसे किया हुआ वादा तोड़ दिया और उस निर्दोष आदमी को बचाया।”

भगवान श्री कृष्ण: “तुम्हें लगता है कि तुमने निर्दोष भोलाराम को बचाया लेकिन वास्तव में तुम ही उसकी मृत्यु का कारण बन गए हो।”

गोवर्धन: “हे भगवान, क्या? मैं उसकी मौत के लिए जिम्मेदार हूं, यह कैसे? मुझे समझ नहीं आया प्रभु।”

भगवान श्री कृष्ण: “गोवर्धन, हम जो भी कर्म करते हैं,  वे एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। हमें बस अपने कर्म करते रहना है। लेकिन जो हो रहा है, उसके खिलाफ कभी नहीं जाना चाहिए। क्योंकि इससे आपदा ही आएगी। इसलिए मैंने तुम्हें दर्शक बने रहने के लिए कहा था। किसी भी चीज का जवाब नहीं देने के लिए कहा था।”

गोवर्धन: “लेकिन भगवान, मुझे इसमें मेरी गलती नजर नहीं आई। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।”

भगवान श्री कृष्ण: “बताता हूं, सबसे पहली बात यह है कि भोलाराम का कुछ समय पहले ही निधन हुआ है।”

गोवर्धन: “क्या? भोलाराम की मृत्यु हो गई है?”

भगवान श्री कृष्ण: “हां, यह तुम्हारी गलती के कारण हुआ है। अगर तुमने उसे जेल जाने दिया होता तो वह सांप को पकड़ने नहीं जाता और बच जाता।  बेचारा वह गरीब आदमी खुशी-खुशी उन पैसों को अपने परिवार पर खर्च कर देता। लेकिन अब उसे पहरेदारों ने कैद कर लिया है और अब उसका परिवार भूख से मर जाएगा। यह इसलिए हुआ क्योंकि तुमने मेरी बात नहीं मानकर उन्हे सब कुछ बता दिया।”

गोवर्धन: “हे प्रभु, लेकिन कम से कम वह व्यापारी मेरे कारण नुकसान से तो बच गया। है ना?”

भगवान श्री कृष्ण: “तुम सही कह रहे हो। लेकिन यह भी तो है कि अगर उस व्यापारी ने पैसों की थैली खो दी होती तो उस पर कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन उस गरीब आदमी को उन पैसों से बहुत फायदा होता। साथ ही, भोलाराम जेल में रहकर मृत्यु से बच जाता।”

गोवर्धन: “आपने जो कहा, वह बिल्कुल सच है कन्हैया। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे आपके इरादों का एहसास नहीं हुआ। आप तो सभी के प्रभु है, सबके कर्मों का हिसाब रखते हैं। फिर भी आप शांत रहे क्योंकि नियति में जैसा लिखा है, वैसा ही होना चाहिए। आप ही है जो हमारे भाग्य का फैसला करते हैं लेकिन मैं आपकी मंशा को नहीं समझा। कृपया मुझे क्षमा कर दे, प्रभु। मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है।”

भगवान श्री कृष्ण: “इसमें गलती तुम्हारी नहीं है, गोवर्धन। यह होना तो पहले से ही तय था। इसलिए परिणाम के बारे में मत सोचो। तुम सिर्फ अपना कर्तव्य करो, उसका फल देना भगवान के हाथों में छोड़ दो।” इतना कहकर भगवान श्री कृष्ण फिर से अंतर्ध्यान हो गये।

गोवर्धन अपना मिट्टी का घड़ा लेकर वापस घर लौट आया। वह अपने कर्तव्य को निभाकर संतुष्ट था और इस घटना को भूल गया।

शिक्षा: इस कृष्ण भगवान की कहानी हिंदी में (lord krishna story in hindi) से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी बुरी परिस्थितियों को कोसना नहीं चाहिए क्योंकि कई बार बुराई में ही हमारे लिए अच्छाई छिपी होती है। हमें सदैव अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए।

निष्कर्ष

आज के लेख में मैंने आपको कृष्ण भगवान की कहानी हिंदी में (lord krishna story in hindi) बताई। इस कृष्ण भगवान की कहानी को पढ़कर शायद आपके मन का बोझ भी हल्का हुआ होगा। आपको कुछ ऐसी चीज भी समझ में आई होगी, जो जिस वक्त हुई उस वक्त आपको बुरी लगी, लेकिन बाद में आपके लिए लाभदायक साबित हुई।

आशा है कि आपको यह कृष्ण भगवान की कहानी हिंदी में (lord krishna story in hindi) पसंद आई होगी। आप भी अपनी कोई कहानी प्रकाशित करवाना चाहते है तो हमें इस ईमेल kamleshsihagbhambhu@gmail.com भेज सकते हैं।

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