मेंढक की कहानी- Mendhak ki kahani

नमस्कार आज के लेख में मैं आपके लिए 6 मजेदार मेंढक की कहानी लेकर आई हूं। प्रत्येक मेंढक की कहानी से आपको एक नयी शिक्षा मिलती है। आज की मेंढक की कहानी हमें बुद्धिमानी, मेहनत, ईमानदारी, कर्तव्य पालन और सतर्कता की सीख देती है। तो आइए पढ़ते हैं मेंढक की कहानी और इससे मिलने वाली अनमोल शिक्षाएं-

Mendhak ki kahani hindi mein। मेंढक की कहानी

इस आर्टिकल में 6 मेंढक की कहानी (mendhak ki kahani hindi mein) है। प्रत्येक कहानी बहुत ही रोचक और शिक्षाप्रद है। इनमें क्रमश: बगुला और मेंढक की कहानी, तीन मेंढक की कहानी, सांप और मेंढक की कहानी, बिच्छू और मेंढक की कहानी, दो मेंढक की कहानी, कुएं का मेंढक कहानी शामिल हैं।

बगुला और मेंढक की कहानी (Bagula aur Mendhak ki kahani)

एक बार एक बगुला था, जो एक जलाशय के पास रहता था। बचपन और जवानी में वह नए-नए प्रकार की मछलियों और मेंढ़कों को खाता। लेकिन अब बगुला बुढ़ा हो चुका था इसलिए उसके शरीर के साथ-साथ उसकी चोंच में भी उतनी शक्ति नहीं बची थी कि वो समुद्र में तैरती मछलियों और मेंढ़कों पर झपटा मार सके।

बगुला और मेंढक की कहानी, मेंढक की कहानी

इस वजह से बगुला हमेशा भूखा रहता। समुद्र के जानवर और उसकी बिरादरी के बाकी बगुले भी उस पर हंसने लगे। इन सबसे बगुला बहुत दुःखी रहने लगा।

एक दिन बुढ़े बगुले को एक चाल सूझी। उसने एक मेंढक को आता देखकर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। बगुले के नकली आंसुओ को देखकर मेंढक को दया आ गयी। उसने पुछा, “क्या हुआ बगुले चाचा? आप रो क्यों रहे हो?”

बगुला बोला, “भतीजे, मैं तो बुड्ढा हो चला हूं। मेरा तो अंत वैसे ही नजदीक हैं परंतु मुझे तुम लोगों की चिंता हो रहीं हैं।”

मेंढक को बगुले की बात समझ नहीं आयी, उसने पुछा, “क्यों चाचा? सब कुशल-मंगल तो है ना?”

बगुला बोला, “नहीं भतीजे, कुछ ही दिनों में कुछ भी मंगल नहीं रहने वाला। मैं कल ही सुनकर आया हूं कि शास्त्रियों ने भविष्यवाणी करी हैं कि अगले दो वर्ष के लिए वर्षा नहीं होगी। इस जलाशय में तो वैसे ही पानी कम है। अगर कुछ महीने वर्षा नहीं हुयी तो जलाशय सूख जाएगा और जलाशय के सारे जीव मर जायेंगे।” इतना कहकर बगुला झूठे आँसू बहाने लगा।

मेंढक ने बगुले को सांत्वना देते हुए कहा, “आप चिंता न करे, हम अवश्य ही मिलकर कोई ना कोई हल निकाल लेंगे।” इतना कहते ही चिंतित मेंढक वापस समुद्र में चला गया।

मेंढक ने सभी समुद्री जीवों को ये सूचना दी तो वे सब मिलकर बगुले के पास पहुंचे और समस्या का हल पूछने लगे। बगुले ने कहा, “समस्या तो बहुत बड़ी है लेकिन फिर भी मैंने आप लोगों के लिए एक उपाय सोचा है।”

इतना सुनते ही सारी मछलियां, मेंढक, केकड़े और अन्य समुद्री जीव खुश हो गए और बगुले से पूछने लगे कि आपने क्या उपाय सोचा है?

बगुले ने कहा, “यहां से थोड़ी ही दूर एक जलाशय है। जिसमें बहुत अधिक पानी है। अगर 5 साल भी सूखा पड़े तो भी उसका पानी नहीं सूखेगा। आप सब लोगों को उस जलाशय में चले जाना चाहिए।”

इतना कहकर बगुला मन ही मन मुस्कुराया। सारी मछलियों ने फिर से चिंता व्यक्त की कि “बगुले चाचा, हम कैसे उस जलाशय में जाएंगे?”

तो बगुले ने कहा, “अरे बहनों, तुम मेरे रहते हुए चिंता क्यों करती हो? मैं खुद तुम लोगों को अपनी पीठ पर बैठाकर उस जलाशय में छोड़कर आऊंगा।” इतना सुनते ही सारे समुद्री जीव खुश हो गए और बगुले का धन्यवाद करने लगे।

बगुले ने आगे कहा कि, “वह जलाशय थोड़ा दूर है इसलिए दिन में केवल दो से तीन लोगों को ही मैं ले जा पाऊंगा और आज शाम से ही मैं यह काम शुरू करूंगा।” इतना सुनते ही सारे जीव फिर से खुश हो गए। अब उसी शाम बगुले ने एक मछली को अपनी पीठ पर बिठाया और उड़ चला।

जलाशय वाली सारी कहानी बगुले की झूठी मनगढंत कहानी थी। बगुले ने एकांत में एक चट्टान देखी और वहां बैठकर मछली को मार कर खा गया। इतने दिनों बाद बगुले को भरपेट भोजन मिला था। उसने भोजन के बाद दिन में अच्छी नींद फरमायी और शाम को जलाशय में छोड़ने के बहाने फिर एक नयी मछली लाया और खा गया। सुबह फिर से जाता और एक नयी मछली लाता और खा जाता।

ये सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा। एक दिन एक मेंढक को बगुले पर शक हुआ। उसने कई मेंढकों के साथ मिलकर बगुले का पीछा किया। उन्होंने बगुले को पास की चट्टान पर नींद फरमाते देखा और पास में ही हड्डियां बिखरी हुई देखी तो मेंढक तुरंत ही सारा मामला समझ गए। वे बगुले को बिना पता चले वापस अपने जलाशय में आ गए और बाकी मछलियों और मेंढकों को यह बात बताई।

अब सब ने मिलकर एक योजना बनाई और अगले दिन दो केकड़े बगुले से विनती करने लगे, “बगुले चाचा, कृपया हमें उस जलाशय में पहले पहुँचा दीजिए।” बगुले ने सोचा कि इतने दिनों तक मछलियां खाकर ऊब गया हूं। क्यों ना आज इन केकड़ों को ही भोजन बना लिया जाए। तो बगुले ने भी हामी भर दी।

अब जैसे ही बगुले ने केकड़ों को अपनी पीठ पर बिठाया। पीठ पर बैठते ही केकङो ने पूरी मजबूत से बगुले की गर्दन को पकड़ लिया। बगल बहुत छटपटाया लेकिन दोनों केकड़ों की गिरफ्त से खुद को नहीं छूटा पाया और मर गया।

बगुला और मेंढक की कहानी से शिक्षा

बगुला और मेंढक की कहानी (bagula aur mendhak ki kahani) से हमें शिक्षा मिलती है की प्रत्येक परिस्थिति में हमें बुद्धि से काम लेना चाहिए। किसी भी संकट के समय हम सभी को अपनी बिरादरी के साथ मिलकर सामना करना चाहिए।

बगुला और मेंढक की कहानी (bagula aur mendhak ki kahani) मैं बगुले का धोखा ही उसकी मौत का कारण बना इसलिए हमें कभी भी किसी के साथ धोखा नहीं करना चाहिए। बगुला और मेंढक की कहानी में बगुला अगर अपनी मेहनत से मछलियां पकड़ कर खाता और धोखा नहीं करता तो शायद समुद्र के सारे जीव मिलकर उसकी मृत्यु की योजना नहीं बनाते।

तीन मेंढक की कहानी (teen mendhak ki kahani)

एक बार की बात है। पांच मेंढक आपस में दोस्त थे। पांचो मेंढकों दोस्ती बहुत गहरी थी। एक दिन पांचो मेंढक दोस्त जंगल में खेल रहे थे। खेलते-खेलते तीन मेंढक एक गड्ढे में गिर जाते हैं। गड्ढा बहुत गहरा था। सारे मेंढक परेशान हो जाते हैं।

तीन मेंढक की कहानी, मेंढक की कहानी

तीनों मेंढक गड्ढे से बाहर निकलने की कोशिश करने लगे। तभी बाहर वाले दो मेंढक कहने लगे कि “अरे गड्ढा बहुत गहरा है। अब तुम लोग इससे बाहर नहीं निकल पाओगे। अब तो तुम्हारा इसी गड्ढे में मरना तय है।”

उनकी बातें सुनते ही एक मेंढक ने तो हार मान ली और उसने वहीं कोशिश करना छोड़ दिया। बाकी बचे दो मेंढक अभी भी कोशिश कर रहे थे। दोनों ने अपनी जी-जान लगा दी लेकिन फिर भी बाहर निकलने में नाकामयाब रहे।

वहीं बाहर खड़े दोनों मेंढक वही राग अलाप रहे थे कि “हमने बोला था ना कि तुम अब इस गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाओगे। क्यों व्यर्थ ही मेहनत कर रहे हो?”

गड्ढे के अंदर बैठा हार मान चुका मेंढक भी अब उनके साथ ही हो लिया और कहने लगा, “अरे हम अब इस गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाएंगे। मरना ही है तो कम से कम आराम करके तो मरे। व्यर्थ की मेहनत क्यों करें? तुम लोग भी अब बैठ जाओ।”

इतनी मेहनत के बाद भी नाकामयाब होने के कारण दूसरे मेंढक ने भी हार मान ली और बैठ गया। लेकिन एक मेंढक तब भी कोशिश करता रहा। वह बार-बार कुछ ऊंचाई तक पहुंचता और दोबारा गिर जाता।

चारों मेंढक उसे भी यही समझाते रहे कि, “अरे यह तो नहीं पता कि भूख-प्यास के कारण तुम्हें मौत कब आएगी? लेकिन तुम यहां से गिरकर जरूर मर जाओगे। क्यों व्यर्थ ही मेहनत कर रहे हो?”

उस मेंढक ने सभी की बातों को अनसुना कर दिया और लगातार कोशिश करता रहा। आखिरकार मेंढक की मेहनत रंग लाई और वह गड्ढे से निकलने में सफल हो गया। बाहर बैठे दोनों मेंढक तालियां बजाने लगे और कहने लगे कि, “हम तो पहले ही जानते थे कि तुम यहां से जरूर बाहर निकल जाओगे।” वही अंदर बैठे मेंढको ने भूख-प्यास के कारण दम तोड़ दिया।

तीन मेंढक की कहानी से शिक्षा

तीन मेंढक की कहानी (teen mendhak ki kahani) से हमें शिक्षा मिलती है कि जब भी हम जिंदगी में कुछ अच्छा करने जाते हैं तो बहुत सारे लोग हमें रोकने के लिए आते हैं। उनके पास हमें हतोत्साहित करने के लिए हजारों तथ्य होते है लेकिन हमें कभी भी उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। हमें केवल अपने दिल की सुननी चाहिए और हमें हतोत्साहित करने वाली बातों के लिए बहरा बन जाना चाहिए।

साथ ही तीन मेंढक की कहानी (teen mendhak ki kahani)से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि जब हम सफल हो जाते हैं, तब हजारों लोग हमारे पीछे खड़े होते हैं जो कहते हैं, “हम तो पहले दिन से ही जानते थे कि आप जरुर सफल होंगे।” भले ही पहले उन्होंने हमें रोकने की कितनी भी कोशिश की हुई होती है। इसलिए इस प्रकार के दोगले लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

सांप और मेंढक की कहानी (saamp aur mendhak ki kahani)

एक बार एक जंगल में एक तालाब था। इस तालाब के पास बिल में एक सांप रहता था। उसी तालाब में मेंढकों का एक बहुत बड़ा दल रहता था, जिसका राजा मेंढक बहुत स्वार्थी था।

सांप अब बुड्ढा हो चला था। इस कारण वह अब शिकार करने में असमर्थ था। एक दिन उसने सोचा कि “क्यों न? मेंढकों के राजा को खुश कर दिया जाए और उसके स्वार्थी स्वभाव का फायदा उठाया जाए।”

अगले दिन ही सांप मेंढकों के राजा के पास पहुंचा और कहा कि, “महाराज! मैं अब बुड्ढा हो चला हूं। शिकार करने में मेरी कोई खास रुचि नहीं है। अब मैं आपकी सेवा में आना चाहता हूं। यदि आप चाहे तो मैं आपको अपनी पूंछ पर बैठाकर पूरे तालाब की सैर करवा सकता हूं।”

मेंढकों का राजा बहुत खुश हो गया। उसने सांप की बात मान ली और सांप भी रोज उसे अपनी पूंछ पर बैठाकर पूरे तालाब की सैर करवाता। ऐसा बहुत दिनों तक चलता रहा। मेंढक को भी अब हर रोज सैर करने में बहुत मजा आता।

सांप और मेंढक की कहानी, तीन मेंढक की कहानी

जब सांप को यकीन हो गया कि अब मेंढक राजा उसकी चाल में फंस गया है तो उसने कहा, “महाराज! क्योंकि मैं बुड्ढा हो चला हूं। इस कारण मैं मरे हुए जानवरों को ढूंढ कर अपनी भूख मिटाने में असमर्थ हूं। भूख के कारण मेरा शरीर भी कमजोर हो गया है। इस कारण कल से मैं आपको सैर नहीं करवा पाऊंगा।”

स्वार्थी मेंढक राजा को भी रोजाना मुफ्त सैर करने की लत लग चुकी थी। इस कारण वह भी चिंतित हो गया। उसने मन ही मन सोचा कि इस तालाब में इतने सारे मेंढक है और अगर सांप रोजाना एक मेंढक को खा लेगा तो भी कहां फर्क पड़ने वाला है?

इसलिए उसने चतुराई दिखाते हुए सांप से कहा कि, “अरे मित्र! तुम्हें यह बात मुझे पहले बतानी चाहिए थी। मैं तुरंत तुम्हारे लिए भोजन की व्यवस्था कर देता। अब तुम इस तालाब से रोजाना अपनी इच्छानुसार मेंढक खा सकते हो।”

इतना सुनते ही सांप खुश हो गया और स्वार्थी मेंढक राजा को रोजाना सैर करवाने का भी वचन दे दिया। अब रोजाना सांप तालाब से मेंढक खाता। चूंकि मेंढक राजा की अनुमति थी तो उसे किसी का भी भय नहीं था।

कुछ ही महिनों में तालाब के सारे मेंढक खत्म हो गए। कुछ मेंढक जो जिंदा थे, वे भी सांप के डर से तालाब छोड़कर भाग गए। एक दिन ऐसा आया कि सांप को कोई भी मेंढक खाने के लिए नहीं मिला।

वह भूख से भटकता हुआ मेंढक राजा के पास पहुंचा। इधर स्वार्थी मेंढक राजा भी चिंतित बैठा था। वह अपने कर्मों पर पछता रहा था। तभी सांप को आता देखकर वह कुछ कहता, इससे पहले ही सांप उसे निगल गया। जो गड्ढा मेंढक ने दूसरे मेंढकों के लिए खोदा था, अंत में वह खुद भी उसी गड्ढे में गिर गया।

सांप और मेंढक की कहानी से शिक्षा

सांप और मेंढक की कहानी (saamp aur mendhak ki kahani) से हमें शिक्षा मिलती हैं कि हमें अपने हितों के लिए दूसरों का अहित नहीं करना चाहिए। दूसरों के लिए अहित की इच्छा रखने वाले का भी समय आने पर अहित जरूर होता है। हमें स्वार्थ की भावना से दूर रहकर अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए।

बिच्छू और मेंढक की कहानी (bichhu aur mendhak ki kahani)

एक बार एक तालाब के किनारे एक मेंढक रहता था। मेंढक का जीवन अच्छा चल रहा था। सुबह-शाम वह भोजन तलाश कर लाता और दिन में पानी में तैरता रहता। इस तरह मेंढक अपनी जिंदगी मजे में काट रहा था।

एक दिन दिन में मेंढक पानी में पड़ा था। तभी एक बिच्छू उसके पास आया और कहा, “मेंढक भैया! तालाब के उस पार मुझे कुछ काम हैं। मैं इतना लम्बा तैर नहीं पाऊंगा। क्या आप मुझे तालाब के उस पार पहुंचा सकते हैं।”

मेंढक ने पहले तो मना किया लेकिन बिच्छू के बार-बार विनती करने पर उसने तर्क दिया कि, “तुम तो डंक मारते हो। अगर तुमने मुझे डंक मार लिया तो मेरी मृत्यु हो जाएगी। इस कारण, मैं तुम्हें तालाब के उस पार नहीं पहुंचा सकता।”

तो बिच्छू ने जवाब दिया कि, “मैं तुमसे वादा करता हूं कि मैं तुम्हें डंक नहीं मारूंगा और जरा सोचो कि अगर मैं तुम्हें डंक मारूंगा तो मैं खुद भी पानी में डूब कर मर जाऊंगा।” मेंढक ने सोचा कि बिच्छू की बात में दम है और वह बिच्छू को तालाब के उस पार छोड़ने के लिए राजी हो गया।

बिच्छू और मेंढक की कहानी, मेंढक की कहानी

अब मेंढक ने बिच्छू को अपनी पीठ पर बैठा लिया और तैरकर तालाब के उस पार जाने लगा। जैसे ही मेंढक तालाब के बीच में पहुँचा कि बिच्छू ने उसे डंक मार दिया। अब मेंढक दर्द से तड़पने लगा। मेंढक ने कराहते हुए पूछा कि, “मैंने तो तुम्हारी सहायता की थी और तुमने मुझसे वादा किया था कि तुम मुझे डंक नहीं मारोगे। फिर भी तुमने ऐसा क्यों किया?”

तो मेंढक ने कहा कि, “मैंने खुद पर नियंत्रण करने की बहुत कोशिश की लेकिन मैं नहीं कर पाया क्योंकि डंक मारना ही मेरा स्वभाव है।” अब मेंढक को अपनी गलती का पश्चाताप हो रहा था। आखिरकार दर्द से कराहते हुए मेंढक ने दम तोड़ दिया और बिच्छू भी डूब कर मर गया।

बिच्छू और मेंढक की कहानी से शिक्षा

बिच्छू और मेंढक की कहानी (bichhu aur mendhak ki kahani) से हमें शिक्षा मिलती है कि किसी पर भी विश्वास करने से पहले हमें उसके स्वभाव को अच्छी तरह से जान लेना चाहिए अन्यथा आप मुसीबत में पड़ सकते हैं। साथ ही हमें कभी भी कृतघ्न और दोगले लोगों पर भरोसा नहीं करना चाहिए।

दो मेंढक की कहानी (do mendhak ki kahani)

एक बार की बात है। दो मेंढक दोस्त थे। एक दिन वे दोनों खेल रहे थे और दोनों उछलते-कूदते एक दही के बर्तन में जा गिरे। अब दोनों मेंढक उस दही के बर्तन से निकलने के लिए लगातार कोशिश करने लगे।

दोनों मेंढक दही के बर्तन से बाहर निकलने के लिए छलांग लगाने की कोशिश करते लेकिन उन्हें पैर रखने के लिए कोई ठोस आधार नहीं मिल पा रहा था। इस कारण वे छलांग नहीं लगा पाते।

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अब कुछ देर मेहनत करने के बाद एक मेंढक ने तो हार मान ली और कहा कि, “मैं तो थक गया हूं। अब जो होगा वह देखा जाएगा।” इतना कहकर उसने कोशिश करना बंद कर दिया और कुछ ही देर बाद वह डूब कर मर गया।

जबकि दूसरे मेंढक ने सोचा कि अगर मरना ही है तो कम से कम कोशिश करके तो मरे। क्या पता, कोई रास्ता ही निकल आए? तो उसने कोशिश करना बंद नहीं की और वह बाहर निकलने के लिए लगातार उछलता-कूदता रहा।

आखिरकार उसकी लगातार उछल-कूद से दही मथ गया और मक्खन का एक ठोस गोला दही के ऊपर आ गया। मेंढक ने अब मक्खन के गोले के ऊपर चढ़कर छलांग लगाई और बर्तन से बाहर आ गिरा।

दो मेंढक की कहानी से शिक्षा

दो मेंढक की कहानी (do mendhak ki kahani) से हमें शिक्षा मिलती है कि मुश्किल हालातो में भी हमें मेहनत का रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए। यदि हम बुरे वक्त में भी लगातार मेहनत करते हैं तो कोई ना कोई रास्ता निकलकर जरूर आता है।

दो मेंढक की कहानी (do mendhak ki kahani) से हमें यह सीख भी मिलती है कि हमें मुसीबत के समय में भी हार नहीं माननी चाहिए क्योंकि हार मानना कोई उपाय नहीं है जबकि मुसीबतों से बाहर निकलने का एकमात्र उपाय मेहनत है।

कुएं का मेंढक कहानी (mendhak ki kahani hindi mein)

एक कुएं में मेंढ़कों का एक दल रहता था। उन्होंने कभी कुएं के बाहर की दुनिया के बारे में ना तो सुना था और ना ही देखा था। वे सोचते थे कि यह ब्रह्मांड उतना ही है जितना यह कुंआ है और यह आसमान भी उतना ही बड़ा है जितना कुंए के भीतर से दिखाई देता है।

कुएं का मेंढक कहानी, मेंढक की कहानी

एक दिन एक और मेंढक उछलता-कूदता उस कुँए में आ गिरा। तो सभी मेंढकों ने उसे घेर लिया और मेंढकों के सरदार ने पूछा कि, “तुम कहां से आए हो?” तो उस मेंढक ने जवाब दिया कि, “समुद्र से।”

तो मेंढकों ने कहा कि, “भला समुद्र क्या चीज होती है?” तो उस मेंढक ने बताया कि, “समुद्र में पानी होता है और वह बहुत बड़ा होता है।” तो उनमें से एक मेंढक ने एक छलांग लगायी और कहां की क्या तुम्हारा समुद्र इतना बड़ा होता है? तो उस मेंढक ने जवाब दिया कि, “अरे, मजाक मत करो। समुद्र बहुत बड़ा होता है।”

तो मेंढकों के सरदार ने उस मेंढक की ओर इशारा किया और उस मेंढक ने दो छलांग लगायी और पुछा कि, “क्या समुद्र इतना बड़ा है?” तो उस मेंढक ने कहा कि, “अरे, क्यों बेवकूफ बना रहे हो? समुद्र बहुत बड़ा होता है।”

तो इस बार मेंढकों के सरदार द्वारा इशारा करने पर उस मेंढक ने कुँए का एक पूरा चक्कर लगाया और कहा कि, “इससे बड़ा तो समुद्र हो ही नहीं सकता।” तो इस बार उस मेंढक ने हंसकर जवाब दिया कि, “अरे कभी कुएं की तुलना भी समुद्र से की जा सकती है भला।”

अब मेंढकों के सरदार को गुस्सा आ गया और सब मेंढकों को आदेश दिया कि, ” इसकी इतनी हिम्मत कि मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश करें। इसको तुरन्त हमारे कुँए से बाहर निकाल दो।”

अब सब मेंढकों ने मिलकर उस मेंढक को कुँए से बाहर निकाल दिया। वह मेंढक भी कुँए के भीतर जाकर बहुत पछता रहा था। उसे लगा कि वह किन मूर्खों में फंस गया है। बाहर आकर वह समुद्र का मेंढक बहुत खुश हुआ।

कुछ देर बाद उस मेंढक को एहसास हुआ कि वे मेंढक भी अपने माहौल के हिसाब से ठीक ही कह रहे थे। आखिरकार उन्होंने भी तो बस उतना कुंआ ही तो देखा था। तो वे कैसे मान लेते कि इस कुँए से बाहर भी दुनिया है। मेंढक मन ही मन मुस्कुराया।

कुएं का मेंढक कहानी से शिक्षा

कुएं का मेंढक की कहानी (Frog in well hindi story) से हमें शिक्षा मिलती है कि हमारी सोच हमारे माहौल के हिसाब से ही होती है। जिस तरह मेंढकों ने पूरे ब्रह्मांड को कुँए तक ही सीमित मान लिया था। उन मेंढकों की तरह हमें अपनी सोच को सीमित नहीं बनाना चाहिए।

कुएं का मेंढक कहानी से हमें यह सीख भी मिलती है कि हमें अपनी सोच का दायरा बढ़ाना चाहिए। हमें अपनी सोच से भी बड़ा सोचना चाहिए क्योंकि जरूरी नहीं कि जो हमने देखा है केवल उसी का अस्तित्व है।

Conclusionआज की मेंढक की कहानी (mendhak ki kahani hindi mein) पोस्ट को पूरा पढ़ने के लिए बहुत-बहुत आभार। आपको मेंढक की कहानी ब्लॉगपोस्ट कैसी लगी, हमें कमेन्ट करके जरूर बताए।

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