नमस्कार, आज के आर्टिकल में आपके लिए डर की सच्ची कहानी लेकर आई हूं। डर की सच्ची कहानी में पढ़िए कि कैसे एक माता-पिता अपने बच्चे के मन से पानी डर निकालते हैं। यह डर की सच्ची कहानी उन सभी पैरेंट्स के लिए प्रेरणा है, जिनके बच्चो के मन में किसी भी प्रकार का भय है।
डर की सच्ची कहानी
एक बार एक आरव नाम का लड़का था। आरव 14 साल का था। वह अपने माता-पिता के साथ रहता था। आरव बेहद होशियार था। लेकिन आरव को पानी से बेहद डर लगता था। आरव के माता-पिता आरव के इस डर के बारे में जानते थे। उन्होंने आरव को बहुत समझाने की कोशिश की थी। लेकिन वे आरव के मन से पानी का डर नहीं निकाल पा सके।
आरव अपने स्कूल में हमेशा पहले स्थान पर आता था। आरव सभी स्पोर्ट्स में भी बेहद होशियार था। लेकिन आरव स्विमिंग नहीं कर पाता था। आरव के स्कूल के सभी टीचर्स भी आरव के पानी के डर के बारे में जानते थे।
अब आरव के स्कूल में एक स्विमिंग प्रतियोगिता होने वाली थी। प्रत्येक क्लास के कुछ बच्चों को इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए चुना गया था। आरव उनमें से एक था। लेकिन आरव यह जानता था, कि वह यह प्रतियोगिता नहीं जीत पाएगा। क्योंकि आरव अपने डर की वजह से पानी में नहीं जा पाएगा।
आरव घर आकर अपने माता-पिता को इस प्रतियोगिता के बारे में बताता है। आरव के माता-पिता बेहद चिंतित हो जाते है कि आरव यह सब कैसे कर पाएगा। लेकिन आरव के माता-पिता के अनुसार आरव के लिए यह प्रतियोगिता बेहद जरूरी थी। क्योंकि इसी प्रतियोगिता से वे आरव के मन से पानी का डर निकाल सकते थे।
अब आरव के माता-पिता ने एक साथ मिलकर फिर से आरव को समझाने की कोशिश की। शाम के समय आरव के माता-पिता आरव के साथ बैठ कर उससे बातें करने लगते हैं। अब आरव के पिता आरव से कहते हैं, “बेटा आरव, तुम्हारे स्कूल में तैरने की प्रतियोगिता है। तुमने इसे जितने के बारे में क्या सोचा है?” आरव अपने पिता से कहता हैं, “पापा, मुझे माफ कर देना। लेकिन इस बार में नहीं जीत पाऊंगा। यदि कोई ओर प्रतियोगिता होती तो मैं जीत जाता, लेकिन मुझे पानी से बेहद डर लगता हैं।”
आरव के पिता उसकी बात समझ जाते हैं। वह आरव से कहते हैं, “अच्छा ये बताओ, तुम पानी से क्यों डरते हो?” आरव अपने पिता को बताता हैं, “पापा, पता नहीं क्यों, मुझे ऐसा लगता हैं कि यदि मैं पानी में गया तो पानी मुझे अपने अंदर खींच लेगा और मैं बाहर नहीं निकल पाऊंगा।” आरव के माता-पिता आरव को चिंतित भाव से देखने लगते है। आरव आगे कहता हैं, “यदि मैं पानी में गया तो मैं डूब जाऊंगा। मैं मर जाऊंगा।”
यह कहकर आरव सोने चला जाता हैं। आरव के माता-पिता आरव के डर को कैसे ख़तम किया जाए ये सोचने लगते हैं। अगले दिन आरव के पिता आरव को अपने साथ एक स्विमिंग पूल ले जाते है। वहां आरव के पिता पानी में तैर कर आरव को तैरना सिखाते हैं। वह आरव के मन से डर निकालने के लिए उसे रोज वहां लेकर जाते और उसे पानी में कूदने को कहते। वह आरव को तैर कर भी दिखाते। लेकिन आरव कभी भी पानी में जाने की हिम्मत नहीं कर पाया। अब आरव के पिता बेहद निराश हो जाते हैं।
आरव के पिता यह सब देख कर आरव को समझाते हैं और आरव से कहते हैं, “बेटा, डर कुछ भी नहीं होता हैं। डर तो केवल हमारे दिमाग और मन का एक वहम होता हैं। डर केवल एक भ्रम है। यदि तुम अपने मन और दिमाग से कह दो कि तुम्हें डर नहीं लगता तो तुम अपने डर से जीत सकते हो। लेकिन यदि तुम डरोगे तो तुम्हारा दिमाग और दिल तुम्हे उससे ओर डराएगा।”
इतना कहकर आरव के पिता आरव को लेकर घर आ जाते हैं। अब आरव के पिता ने आरव को स्विमिंग पूल ले जाना बंद कर दिया था। अब आरव की प्रतियोगिता में केवल दो दिनों का समय रह गया था।
अब आरव के माता-पिता एक योजना बनाते हैं। वह आरव को एक नदी किनारे पिकनिक पर ले जाते हैं। वह जगह बहुत खूबसूरत थी। वहां वे नदी किनारे कैंप लगाते हैं। वहां जाकर वे एक साथ हंसते-खेलते हैं। वे सभी बेहद मौज-मस्ती करते हैं। आरव पिकनिक पर जाकर खुश हो जाता हैं। अब शाम होने वाली होती हैं।
आरव के पिता आरव से कहते हैं, “बेटा आरव, मुझे थोड़ा सा काम हैं। तुम यहां अपनी मम्मी के साथ रुको, मैं थोड़ी देर में आता हूं। आरव,अपनी मम्मी का ख्याल रखना।” आरव अपने पिता से कहता हैं, “ठीक है, पापा।” यह कहकर आरव के पिता वहां से चले जाते हैं। आरव के पिता वहीं पास में किसी झाड़ियों के पीछे छिप जाते हैं और वहां से आरव को देखने लगते हैं।
Read also:
विषकन्या की कहानी (story of poison girl)
अब थोड़ी देर बाद आरव की मम्मी आरव से कहती हैं, “बेटा तुम यहां खेलों, मैं नदी किनारे फिशिंग कर लेती हूं।” आरव हां में सिर हिलाकर वहां पर अकेला खेलने लगता है। अब काफी देर बाद अचानक से आरव को अपनी मम्मी की चिल्लाने की आवाज आती हैं, “मुझे बचाओ! आरव बेटा।” आरव जब देखता है तो उसकी मम्मी पानी में डूब रही होती हैं। आरव को कुछ भी समझ नहीं आता है। आरव बेहद घबरा जाता हैं। आरव सोचता है कि पापा भी नहीं हैं, अब मम्मी को कौन बचाएगा?
अब आरव खुद से कहता हैं कि “डर केवल मन और दिमाग के भ्रम है। मैं पानी से नहीं डरता हूं।” यह कहकर आरव पानी में कूद जाता हैं। अब आरव को उसके पिता ने जैसे तैरना सिखाया था, वह वैसे ही तैरने की कोशिश करने लगता हैं। थोड़ी देर में आरव पानी में स्थिर होकर तैरने लगता हैं। आरव के मन से पानी का डर निकल जाता हैं। वह तैर कर अपनी मम्मी को बाहर ले आता है।
यह देखकर तुरंत आरव के पिता आरव के सामने आकर आरव को गले से लगा लेते है। आरव अपने पिता को यूं देखकर हैरान हो जाता हैं। आरव को कुछ भी समझ नहीं आता है। आरव के माता-पिता उसे बताते हैं कि उन्होंने यह केवल एक नाटक किया था। आरव की मम्मी को तैरना आता था। उन्होंने यह केवल आरव के डर को दूर करने के लिए किया था।
आरव अब सब समझ जाता हैं और आरव का डर भी दूर हो जाता हैं। आरव अपनी स्कूल की स्विमिंग प्रतियोगिता में भाग लेता है और उस साल तो वो हार गया लेकिन अगले साल उसने पूरी मेहनत की और मेडल जीता।
डर की सच्ची कहानी से सीख
इस डर की सच्ची कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि हमें कभी भी किसी भी चीज से नहीं डरना चाहिए। हमें डर का सामना करके उस पर जीत हासिल करनी चाहिए। डर केवल दिल और दिमाग का भ्रम होता हैं।
आपको आज की डर की सच्ची कहानी कैसी लगी, हमे कॉमेंट करके जरूर बताए। आप भी अपनी कहानियां हमें लिखकर भेज सकते है। धन्यवाद!